दुआओं का दान
दो सप्ताह से अपनी पूरी टीम के साथ नवीन रक्तदान कैंप की तैयारियों में लगा हुआ था. साल में दो बार वह रक्तदान कैंप का आयोजन करता था. जून और दिसंबर का आखिरी रविवार उसने कैंप के लिए नियत कर रखा था. फुर्सत के पल मिलते ही अतीत चुपके से बिना दस्तक दिये हलचल मचाने लगता है यह किसी को कहां समझ आती है.
नवीन हमेशा से ही कुछ नवीन करना चाहता था, पर जिंदगी के झमेलों में वह न जाने किस कदर उलझ गया था, कि नवीनता का जोश न जाने कब-कहां-कैसे लुप्त हो गया था, उसे पता ही नहीं चला. घर से ऑफिस और ऑफिस से घर तक ही वह सीमित रह गया था. कभी-कभी उसे लगता था-
”ताउम्र इस गम से न मैं उबर सका,
जुगनू थे मेरे दामन में रोशन न मैं कुछ कर सका.”
बचपन से ही नवीन रक्तदान महादान का नारा सुनता आया था. पर वह इसको महज नारा ही समझता था, क्योंकि उसे कभी इसके महत्त्व के बारे में किसी ने विशेष रूप से न घर में समझाया था, न ही स्कूल में. उसका कभी ऐसी घटना से भी पाला नहीं पड़ा, कि उसे रक्तदान का महत्त्व समझ में आए. अचानक एक दुर्घटना ने उसकी आंखें खोल दी थीं.
एक कार दुर्घटना में उसके पिताजी का बहुत-सा रक्त बह गया था. दुर्घटना के समय मौजूद लोग उन्हें लेकर अस्पताल गए, लेकिन अस्पताल में उनके ग्रुप का रक्त मौजूद नहीं था और जब तक रक्तदान करने वाले रक्तदाता का इंतजाम हो, रक्त लेने वाला ही नहीं रहा था. नवीन के ऑफिस से पहुंचने से पहले ही वे इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे.
नवीन को खुद भी लग रहा था, कि काश! उन्हें समय पर रक्त मिल जाता, तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता. उसकी माताजी भी बार-बार कहती थीं, कि अस्पताल में उनके ग्रुप का रक्त होता या कोई रक्तदाता मिल जाता तो शायद वे बच पाते. उसकी आंखों के आगे जीने को बेबस पिताजी की तस्वीर सामने आ जाती और वह रक्तदान के बारे में शिद्दत से सोचने लगा था.
नवीन के पिताजी तो भले ही न बच पाए, लेकिन अब नवीन का भरसक प्रयत्न रहता था, कि किसी और को रक्त उपलब्ध न होने के कारण ऐसा दुर्दिन न देखना पड़े. इसलिए वह बहुत-से डॉक्टर्स से मिलता रहता था और रक्तदान की नई-नई योजनाएं बनाता रहता था.
योजनाएं बनाना अलग बात है, उनका क्रियान्वयन करना दूसरी बात. बहुत-से लोग तो रक्तदान का नाम सुनते ही बिदक जाते थे. उसने खुद भी इस बारे में अध्ययन किया. रक्तदान कैंप्स के कई पैम्फ्लेट्स भी देखे. आखिर उसने रक्तदान के लिए लोगों को सहमत करने के लिए यह निष्कर्ष निकाला-
”रक्तदान के महत्त्व से भला कौन अपरिचित है! कोई घायल हो या ऑपरेशन का रोगी, रुपए-पैसे से काम नहीं चलता. धन-दौलत अपार हो, पर अस्पताल में जिस ग्रुप का रक्त चाहिए, वही न हो तो भला अस्पताल वाले भी क्या कर सकते हैं? रक्त भी समय रहते मिलना चाहिए, ज़रा-सी देर हुई नहीं कि मामला हाथ से गया. यह रक्त लभी मिल सकता है, जब 18 साल से बड़े स्वस्थ लोग स्वेच्छा से रक्तदान के लिए आगे आएं. सरकार बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स, रेडियो और दूरदर्शन पर विज्ञापनों के ज़रिए बार-बार बता रही है, कि रक्तदान करने से कोई कमज़ोरी नहीं आती, तुरंत ही रक्त की कमी पूरी हो जाती है और तीन महीने बाद फिर से रक्तदान किया जा सकता है. अब यह हम पर निर्भर करता है कि, हम कितने जागरुक हो सकते हैं. कोई सेवा करने की चाहत केवल ज़बानी जमाखर्च की बातों से सम्भव नहीं है. उसके लिए कुछ ठोस कदम भी उठाने पड़ेंगे और वह कदम हमें ही उठाना होगा. आइए स्वेच्छा से रक्तदान करें और देश-समाज के कल्याण हेतु हाथ बंटाएं, लोगों की जिंदगियां बचाएं.”
उसने एक और काम भी किया. वह जानता था, वृक्ष को हरा-भरा रखने के लिए पत्तों को नहीं, वृक्ष की जड़ों को जल से सींचना होगा. बच्चों-युवाओं को संस्कारित करने का नेक काम घर के बड़े-बुज़ुर्ग और अध्यापकगण कर सकते हैं, इसलिए नवीन ने उनसे मिलकर उनमें अन्दर की प्रेरणा के अतिरिक्त सुसंस्कारों को पोषित करने का विचार बनाया. संस्कार देने का यह शुभ काम या तो अभिभावक और घर के बड़े-बुज़ुर्ग कर सकते हैं या गुरुजन अर्थात् अध्यापकगण. घर के वातावरण और साक्षात् उदाहरणों से घर के बच्चों में नेक संस्कार डालने का काम तो हो ही जाता है, पर अध्यापकगण की बातों का बच्चों पर और ज़्यादा असर पड़ता है, क्योंकि वे बच्चों के रोल मॉडल होते हैं. उसने बड़े-बुज़ुर्गों और अध्यापकों से सम्पर्क करके घर-स्कूल-कॉलेज के बच्चों को रक्तदान के लिए तैयार किया. उसके रक्तदान-कैम्प के बैनर का मुख्य अंश होता था-
“रक्तदान की एक इकाई,
दे सकती किसी को जीवनदान।
दुर्घटना-रण में घायल-हित,
रक्तदान है महादान॥”
आखिर वह लोगों को रक्तदान करने के लिए सहमत करने में सफल हो ही गया. अब वह खुद भी साल में दो बार रक्तदान का कैंप लगवाता, इसके अलावा जहां भी रक्तदान कैंप लगता, वह यथाशक्ति उसमें सहयोग करता. उसने अनेक अस्पतालों को अपना फोन नंबर भी दे दिया था, ताकि किसी भी आपात्काल के लिए उससे संपर्क किया जा सके. अब तो उसके पास अनेक रक्तदाताओं के रक्त ग्रुप सहित फोन नंबर भी मौजूद थे, जो उसने अपने फोन और लैपटॉप पर सेव कर रखे थे.
उसे रक्तदान के साथ दुआओं का दान भी मिल रहा था.
पुनश्च-
यह शिविर हमारे पूजनीय पिताजी स्व. तोलाराम जेठानी की बरसी के उपलक्ष में आयोजित किया जा रहा है. इच्छुक रक्तदाता दिए गए पते पर सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक रक्तदान कर सकते हैं. रक्तदान से खुद को भी लाभ होता है, औरों को भी जीवनदान मिल सकता है.
कुछ भ्रांतियां, जो बिलकुल गलत हैं-
1.दुबले लोग रक्तदान करने के लिए अयोग्य होते हैं.
2. महिलाएं रक्तदान नहीं कर सकती हैं.
3.ब्लड डोनेशन से तकलीफ होती है.
4.शाकाहारी लोगों के लिए रक्तदान करना ठीक नहीं.
5.हमारे शरीर में ब्लड सीमित है और दूसरे को खून देना स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता है.
6.कुछ लोग इस कारण भी ब्लड डोनेट करने से हिचकते हैं क्योंकि वे दवा खा रहे होते हैं.