हद है यार।
अज्ञानी भी ज्ञान दे रहे, हद है यार।
अदला-बदली मान दे रहे, हद है यार।।
धन्ना सेठ बैठ जहाँ पर खाते हैं,
नौकर सारे जान दे रहे हद है यार।
बारिश में तो भीग रहे थे अच्छे से,
उसपर छप्पर तान दे रहे हद है यार।
देखा होता मायूसी भी रो देती,
उसपर भी मुस्कान दे रहे, हद है यार।
खुद को घिसकर हमने था कुछ नाम किया,
फिर से इक पहचान दे रहे, हद है यार।
जिसके खातिर हमने सबकुछ छोड़ दिया,
वो हमको ही तान दे रहे हद है यार।
…………..मानस