मुलाकात
तुझसे मुलाकात तो एक बहाना है
फूलों को मौसम की रंगत दिखाना है
बात लब पर आने को मचलती है
बहारें मौसम पर आने को तरसती है
तुझसे मुलाकात तो एक बहाना है
फूलों को मौसम की रंगत दिखाना है
मुलाकातों को गिनना नामुमकिन
धड़कता दिल बया ये सब मुमकिन
बिखर रही है गुलाब की पंखुड़िया
नादान दिल समझ बैठा लब है तेरे
तुझसे मुलाकात तो एक बहाना है
फूलों को मौसम की रंगत दिखाना है
राहों में पलट के चेहरा नही देखते
हसीन चेहरों पर कायनात पलटती
इंतजार से पड़ जाते पैरो में छाले
नर्म दूब इस मर्ज को समझ जाती
तुझसे मुलाकात तो एक बहाना है
फूलों को मौसम की रंगत दिखाना है
तुम्हारी मीठी आवाज की बेकरारी
बंसी जैसे मीठे सुर की हो पुकारी
नींद तो रास्ता भूली ख्वाब का ऐसे
दिल मे बना रखी हो तेरी तस्वीर जैसे
तुझसे मुलाकात तो एक बहाना है
फूलों को मौसम की रंगत दिखाना है
— संजय वर्मा ‘दृष्टि’