असम में अनोखे चावल की खेती
जब बहुत ज्यादा भूख लगती है तो मिनटों में क्या बनाते हैं। अधिकतर लोगों का जवाब होगा नूडल्स। यदि यह कहा जाए कि एक चावल की किस्म ऐसी भी है। जोकि पूरी तरह प्राकृतिक है और इसे खाने के लिए पकाने की जरूरत नहीं है। जी हां! पानी भी गर्म नहीं करना। यह पूरी तरह प्राकृतिक है और दिलचस्प है कि इसकी खेती असम में होती है।
यह है बोका चाउल (चावल) या असमिया कोमल चावल। असम की ऐसी प्राकृतिक उपज है। जिसके बारे में सुनकर लोग अक्सर चौंक जाते हैं। इस चावल के प्रकार को हाल ही में जी.आई (जियोग्राफिकल इंडिकेशंस) टैग के साथ पंजीकृत किया गया है।
यह टैग विशेष गुण के लिए मिलता है। जी.आई टैग उन उत्पादों को दिया जाता है। जिनकी उत्पत्ति किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में होती है। असम में मुगा सिल्क, जोहा चावल और तेजपुर की लीची के बाद यह एकमात्र ऐसी उपज है। जिसे विशेष गुण और प्रतिष्ठा के कारण यह टैग मिला है।
मुगल काल में यह चावल सैनिक खाते थे। इस बोका चाउल (चावल) की खेती असम के नलबारी, बारपेटा, गोलपाड़ा, बक्सा, कामरूप, धुबरी, कोकराझर और दारंग जिलों में की जाती है। यह सर्दियों का चावल है। जिसे जून के तीसरे या चौथे हफ्ते से बोया जाता है। महत्वपूर्ण यह है कि इस फसल की कोई नई प्रजाति नहीं है। इस चावल का इतिहास 17वीं सदी से जुड़ा है। उस जमाने में मुगल सेना से लड़ने वाले अहोम सैनिकों का यह मुख्य राशन हुआ करता था।
बस सादे पानी में थोड़ी देर भिगो दिया और भोजन तैयार।
यह चावल वाकई अनोखा है क्योंकि इसे पकाने के लिए आपको किसी ईंधन की जरूरत नहीं है। इसे खाने के लिए सामान्य तापमान पर कुछ देर तक पानी में भिगो दिया जाता है और यह बनकर तैयार हो जाता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे आप चना, मूंग या बादाम को अंकुरित कर खाते हैं।
आम चावल की तरह ही खाने में स्वादिष्ट होता है। यह चावल ठंडी प्रवृत्ति का है और इसे गर्मियों में खाया जाता है। नलबारी स्थित लोटस प्रोग्रेसिव सेंटर (एलपीसी) एनजीओ ने साल 2016 में चावल की इस किस्म के जीआई टैग के लिए आवेदन किया था। इसके अलावा पर्यावरण शिक्षा केंद्र (सीईई) ने भी इसके लिए आवेदन दिया था।
असम में स्थानीय लोग इस चावल को दही, गुड़, दूध, चीनी या अन्य वस्तुओं के साथ खाते हैं। पारंपरिक पकवानों में भी इस चावल का उपयोग किया जाता है। तो इस महत्वपूर्ण व अनोखे चावल का जायका आप भी जरूर लीजिए।
— निशा नंदिनी