कविता

बचपन

काश बचपन के दिन वापस लौट पाते,
वह बेफिक्री वाले पल फिर से जी पाते।
काश……………
दोस्तों के संग पढ़ना, खेलना ,झगड़ना,
मोहल्ले में टोलियां बनाकर हुल्लड़ मचाना।
भाई बहन से वह चिढ़ाना -चिढ़ाना;
यूं ही रूठना और यूं ही मान जाना,
कमाने की चिंता ,न गंवाने का डर,
दुनिया की झंझटों से बेखबर।
काश……………….
स्कूल में शिक्षकों के छद्म नाम रखकर,
इशारों में दोस्तों संग उनको चिढ़ाना।
परायों की बगिया में चुपके से घुसना,
पेड़ पर चढ़कर फलों को चुराना।
शिकायत का फिर घर तक पहुंच जाना,
मासूमियत से फिर वह सिर का हिलाना।
काश…………….
पापा का मेरी गलतियों पर तिलमिलाना,
मम्मी का सब जानकर भी मुझको को बचाना।
दीदी का वह मेरी शैतानियों को छुपाना,
छोटे भाई बहनों संग हुड़दंग मचाना।
गर्मियों की छुट्टियों में गांव जाना,
वहां जी भर के मस्ती मनाना।
काश………….
काश बचपन के दिन वापस लौट पाते।
— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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