कविता

कविता

चुप्पी चुभती हैं
मन मूक है
ऐसे वार किया है विवशता ने
चौंक कर चीख उठी है अंतरात्मा ।

बिंध गए हैं सारे सवाल
संग्राम हृदय और मस्तिष्क में है ।

भावो भरी प्रत्यंचा
खालीपन लिए तरकश में
सहमा सहमा शिथिल कांधे पर झूल रहा है।

व्यथित विडंबना कि
मौन से ही घायल मौन औंधा गिरा है अकेला।

— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)