कविता
चुप्पी चुभती हैं
मन मूक है
ऐसे वार किया है विवशता ने
चौंक कर चीख उठी है अंतरात्मा ।
बिंध गए हैं सारे सवाल
संग्राम हृदय और मस्तिष्क में है ।
भावो भरी प्रत्यंचा
खालीपन लिए तरकश में
सहमा सहमा शिथिल कांधे पर झूल रहा है।
व्यथित विडंबना कि
मौन से ही घायल मौन औंधा गिरा है अकेला।
— साधना सिंह