कोई नहीं है गैर बाबा!
कार्तिक पूर्णिमा का पावन दिन था. चारों ओर गुरु पर्व मनाये जाने की धूम थी. दिनेश जी अपनी बहिन की शादी का भात देकर वापिस आ रहे थे. दो गाड़ियों को रवाना करके दिनेश जी तीसरी गाड़ी में आ रहे थे, कि रास्ते में उनको एक दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी दिखी.
”भनकू जरा गाड़ी रोको, शायद हम किसी की मदद कर पाएं.” दिनेश जी ने अपने ड्राइवर से कहा.
”साहब ऐसे हादसे तो यहां रोज ही होते रहते हैं, आप पुलिस के पचड़े में क्यों पड़ना चाहते हैं?” भनकू के कान पर भनक नहीं पड़ी, उसने गाड़ी आगे बढ़ा ली. शाम का धुंधलका था और दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी किराये की थी, इसलिए पहचान में नहीं आ पाई थी.
थोड़ी देर बाद दिनेश जी के मोबाइल पर उनकी एक गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाने की खबर आई. दिनेश जी ने कार को वापिस मुड़वाया.
”ओफ्फो, ये तो अपनी ही गाड़ी थी!” दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी के पास खड़े एक रिश्तेदार को हाथ हिलाते देख दिनेश जी की चीख निकल गई.
3 बेटियों, भाभी, भाई को हादसे में गंवाने वाले दिनेश जी के दुःख का पारावार नहीं था. ”काश! उस समय अपने-पराये का विषैला विचार किये बिना मैं मदद के लिए रुक जाता, शायद कोई बच जाता! गुरु नानक देव जी ने भी तो सबको अपना मानकर मदद करने की सीख दी थी!”
”कोई नहीं है गैर बाबा! बिना किसी भेदभाव के सभी की मदद कीजिए.” समय मिलते ही दिनेश जी ने वाट्सऐप के अपने सभी परिचितों को व ग्रुप्स को मैसेज भेज दिया.
अपने-पराए के फेर ने भरे-पूरे परिवार पर मौत के साये ने अपना जाल बिछा दिया. संत-महंतों के सुविचार महज पढ़ने-पढ़ाने के लिए नहीं हैं, उन पर अमल करना भी उपयोगी और अनिवार्य है.