गीतिका/ग़ज़ल

तुम वही हो क्या

जिसको चाहा था तुम वही हो क्या?
मेरी हमराह ज़िंदगी हो क्या?

कल तो हिरनी बनी उछलती रही
क्या हुआ आज थक गई हो क्या?

ऐ बहारों की बोलती बुलबुल
क्यों हुई मौन बंदिनी हो क्या?

ढूँढती हूँ तुम्हें उजालों में
तुम अँधेरों से जा मिली हो क्या?

महफिलें अब नहीं सुहातीं तुम्हें?
कोई गुज़री हुई सदी हो क्या?

क्यों मेरे हौसले घटाती हो
मेरी सरकार दिल-जली हो क्या?

थी नदी चंचला उफनती हुई
सागरों से भला डरी हो क्या?

सुन रही हो कि जो कहा मैंने?
कोई फरियाद अनसुनी हो क्या?

“कल्पना” मैं कसूरवार नहीं
रूठकर जा रही सखी हो क्या?

– कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]