ग़ज़ल
पतझड़ में भी प्यार की बहार ढूंढ लेंगे
हम बेचैनियों के शहर में करार ढूंढ लेंगे।
तू लाख बचा दामन दुश्मनी अदा कर
नफरत भरे दिलमें भी हम प्यार ढूंढ लेंगे।
एहसान है खुदा का ये नज़र ए इनायत है
गैरों में भी हम दिल का हकदार ढूंढ लेंगे।
दो पल के लिए आईना बनिए जरा हुजूर
आंखों में तेरी प्यार का इकरार ढूंढ लेंगे।
सहरा में भटकने से भी मिलता नहीं दरिया
हम वह हैं जो सहरा में भी फुहार ढूंढ लेंगे।
कबतक यूं ही तड़पाएंगी तनहाइयां जानिब
हम अपने जैसा दिल ए बेकरार ढूंढ लेंगे।
— पावनी जानिब सीतापुर