किसपे करे भरोसा होता ही अब नहीं।
किसपे करे भरोसा होता ही अब नहीं।
ये दर्द बेतहासा सोता ही अब नहीं।।
सोचा उगायें हम फसलों को प्यार की,
वो बीज इश्क के भी बोता ही अब नहीं।
रोकर निकालते थे पहले तो सारे ग़म,
पत्थर हुआ मेरा दिल रोता ही अब नहीं।
किसपे करे भरोसा होता ही अब नहीं।
ये दर्द बेतहासा सोता ही अब नहीं।।
……………..मानस