गीत – जीने का आधार मिले
सतत कर्म करने पर मानव, सफल बने सत्कार मिले
भूप भगीरथ गंगा लाये, जप तप से अधिकार मिले ।
बहती सरिता कहती हमसे, रुकने से सड़ता पानी ।
चलते रहतें तभी जिंदगी, साँस रुके मरता प्राणी ।।
पावन नदियों से ही हमको,जीने का आधार मिले
उत्तर से दक्षिण तक विस्तृत, नदियों से मैदान मिले ।
नदियों से सागर तक हमको,खनिज लवण पाषाण मिले।
सच में बहती सरिता से ही, जीवन में उपहार मिले ।।
निर्मल नीरामृत नदियों का, सबका एक सहारा है ।
करें गंदगी नही प्रवाहित, यह संकल्प हमारा है ।।
नही चाहती हमसे नदिया, बदले में उपकार मिले ।।
दरिया जैसा मानव जीवन, नहीं कभी क्यों हो पाता !
लक्ष्य नहीं निर्धारित करके ,दिशाहीन क्यों हो जाता !!
लोभ, मोह ,मद, माया घेरे, तभी हमें दुत्कार मिले ।
— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला