गीत/नवगीत

यही हम बोलेंगे

इक बोगी में भर लो कई हजार।
यही,हम बोलेंगे।
जीवन जबकि,फंसा हुआ मजधार।
यही,हम बोलेंगे।
पटना जैसे स्टेशन पर।
भीड़ लगी है भारी।
मुंबई नगरी जाने वाले।
जुटे हुए नर-नारी।
इधर पसीने से भीगे,  सरकार।
यही,हम बोलेंगे।
जीवन जबकि फंसा हुआ मजधार।
यही, हम बोलेंगे।।
सीट ठसा-ठस भरी हुई।
अगल-बगल भी कसी हुई है।
शौचालय को खोल के देखा।
गठरी से सब पटी हुई है।
दरवाजे से भीड़ रही ललकार।
यही,हम बोलेंगे।
जीवन जबकि फंसा हुआ मजधार
यही,हम बोलेंगे।
मटरू बोले राम चरन से।
जरा जगह दो भाई।
इतने में हो गयी है भैया।
जम के ख़ूब लड़ाई।
जोड़ दिये होते,बोगी।
दो-चार यही,हम बोलेंगे।
जीवन जबकि फंसा हुआ मजधार।
यही,हम बोलेंगे।
जिनको अंदर, नहीं मिली है।
जगह सुनो तुम भाई।
ऊपर वाली सीट बांध के।
चादर है लटकाई।
झुरमुट के अंदर में जैसे।
दुबकी हुई बिलाई।
लटके हम चमगादड़ जैसे यार।
यही,हम बोलेंगे।
जीवन जबकि फंसा हुआ मजधार।
यही, हम बोलेंगे।
सरकारों से यही गुजारिस।
टिकट देख शर्माओ।
जितनी जनता टिकट खरीदे।
सबको सीट दिलाओ।
मेरा सपना कब होगा साकार?
यही,हम बोलेंगे।
जीवन जबकि फंसा हुआ मजधार।
यही, हम बोलेंगे।
— लाल चन्द्र यादव

लाल चन्द्र यादव

ग्राम शाहपुर, पोस्ट मठिया, जि. अम्बेडकर नगर उ.प्र. 224149 शिक्षा एम.ए. हिन्दी, बी.एड. व्यवसाय शिक्षक, बेसिक शिक्षा परिषद, जिला-बरेली