लघुकथा – बड़प्पन
नगर के सिध्द स्थल हनुमान मंदिर में लक्ष्मण प्रसाद पहुंचे और प्रार्थना करने लगे -” हे भगवान कल का केस मैं ही जीतूं, इतनी दया ज़रूर करना। नहीं तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा। मेरी सारी दौलत मेरे सबसे बड़े दुश्मन के पास चली जाएगी ।”
उनके जाने के बाद थोड़ी देर में रामप्रसाद आये और वे भी प्रार्थना करने लगे-” हे भगवान कल का केस लक्ष्मण प्रसाद ही जीते, इतनी दया करना। नहीं तो उसे बड़ा आघात लगेगा, और वह भीतर तक टूट जाएगा ।मुझे कुछ नहीं चाहिए, मुझे केवल आपकी कृपा की ज़रूरत है ।”
जैसे ही रामप्रसाद बाहर निकले, वैसे ही मंदिर के महंत उनसे बोले- “रामप्रसाद जी आप केस में ख़ुद की हार और अपने छोटे भाई की जीत की कामना कर रहे हैं, जबकि वह आपको अपना पक्का दुश्मन मानता है। क्या आप यह नहीं जानते ?”
“जी,बिलकुल जानता हूं ।”
“तो फिर ,ऐसा क्यों?”
“वह इसलिए ,क्योंकि मैं बड़ा हूं ।”
“तो ?”
“तो, बड़े के साथ क्या बड़प्पन नहीं होना चाहिए ? ” रामप्रसाद ने दृढ़ता से जवाब के साथ सवाल भी कर दिया। महंत जी अब निरुत्तर थे ।
— प्रो. शरद नारायण खरे