ग़ज़ल
कभी अपने लिए कुछ शौक पाल जीना था,
मौत का ज़िंदगी से डर निकाल जीना था।
क्यूं अपने मन को मार इतने दिनों जीता रहा,
क्या तुझको थी ये ख़बर कितने साल जीना था।
बाद तेरे हो तेरी ‘जय’ मिसाल दुनिया में,
जितना जीना था तुझे बेमिसाल जीना था।
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’