गीतिका/ग़ज़ल

बेटियाँ

बेटियाँ

बेटियाँ हैं हसरतें दिल की कली-
छोड़ दूजे घर बसें दस्तूर है |

प्रेम के रस में पगी रस घोलती-
ये दुआ रब की खुदा का नूर हैं |

बेटियों से गूँजता है आँगना –
ये न हों तो हर चमन बेनूर है |

मत भरो इन आँख में यूँ अश्क को-
ये खुदा की नेमते मशहूर हैं |

बेटियों की ज़िंदगी अनमोल है –
बेटियों से घर की रौनक हूर है |

बेटियाँ हैं मान घर की शान है-
बेटियों ने कुल किये पुरनूर है |

ना रहीं जो बेटियाँ मिट जायेगा-
दंड मिलता है यही दस्तूर है |

मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016