चल मुसाफिर! अकेला चलना अच्छा है।।
वक्त के साथ बदलना अच्छा है।
चल मुसाफिर! अकेला चलना अच्छा है।।
राह में और मौके भी मिलेंगें।
मुहब्बत भी मिलेगी धोखे भी मिलेंगें।।
पत्थरो की पीर सा पिघलना अच्छा है।
चल मुसाफिर! अकेला चलना अच्छा है।।
ये शहर अब खुदाओ का डेरा हुआ है।
अँधेरा है, कहते सवेरा हुआ है।।
खाली हैं सड़कें, तारे गगन में।
चलते रहो तुम अपनी मगन में।।
गिर जो गए खुद सम्भलना अच्छा है
चल मुसाफिर! अकेला चलना अच्छा है।।
तनहाइयों को साथ मान लेना।
परछाइयों को हाथ मान लेना।।
जो जैसा दिखता होता नही है।
हँसता जो चेहरा क्या रोता नही है?
उदासी से हँसकर निकलना अच्छा है।
चल मुसाफिर! अकेला चलना अच्छा है।।