बुजुर्गों का सहृदय सम्मान करें : इनकी वेदना व आत्म सम्मान को ठेस न पहुचांये
बड़े – बुजुर्गों का आत्म सम्मान करना हमारी जिम्मेदारी हैं। आज इनकी वजह से ही सबकुछ है, इनकी अवस्था देखकर निन्दा या तिरस्कार नहीं करना चाहिए इनकी सेवा, आत्म सम्मान, सेवा-चत्कार करना हमारा परम् धर्म हैं। आजकल इनके मानसिकता के ठेस पहुंचाने के मामले बड़ी तेजी बढ़ रहे हैं। बड़े शर्म व निंदनीय यह बात हैं बुजुर्ग माता पिता की औलाद ही अनदेखी कर रहे हैं, उनका तिरस्कार व सेवा आदि नहीं करने के मामले बड़ी तेजी बढ़ रहे हैं। बुजुर्ग अपने धंधे, व्यवसाय, सर्विस से साठ वर्ष की उम्र हो जाने पर बुजुर्ग अपने ही समवयस्यक साथियों से ज्यादा से ज्यादा घुल-मिल जाते हैं। वे आपस में जब मिलते हैं तो घर बाहर की आप बीती या प्रचलित कहानियां कह सुनकर समय का सदुपयोग करते हैं। अपने जीवन में भूतकाल एवं वर्तमान के मीठे कड़वे अनुभवों विचारों को कहते सुनते सुनाते हैं। तथा अपने शेष जीवन के दिन हंसी खुशी से व्यतीत करते है उनका अपना समूह बन जाता हैं। बुजुर्गों का समूह यह तो जानता है कि हम हर काम, धंधे, सर्विस से रिटायर तो हो चुके हैं मगर जिन्दगी से अभी नहीं। न मालूम जिन्दगी का कितना पड़ाव शेष रहा है। समयावधि से रिटायर होने का सभी को दुख: होता है कि किन्तु शेष जिन्दगी बखूबी ढंग से आनंद पूर्वक निकल जावे, यह उनके विचार का विषय अवश्य है।
वेदना :- परिवार के सभी सदस्य समान विचारों के नहीं होते, यदि ऐसा कोई परिवार है तो वह स्वर्ग समान है। हर मनुष्य के जीवन को हर दशक उसके लिए अलग-अलग मायने रखता है। उनके जज्बात व तजुर्बे पहले से उत्तरोत्तर बढ़ते हैं, बदलते है,बुरे भी होते हैं। किसी का भी पूरा जीवन काल एक सा नहीं होता, अत: बुजुर्गों को भी बदलते जमाने की रफ्तार के साथ सामंजस्य रखना जरूरी हैं। प्राय परिवारों में देखा यह जाता है कि अपने ही परिवारजनों का बुजुर्गों के प्रति व्यवहार, बोलचाल एवं दृष्टिकोण में बदलाव आने लगता है। बस यही से बुजुर्गों की वेदना शुरू हो जाती हैं। कहने को तो बुजुर्गों जिन्होंने अपना सारा जीवन परिवार हित में भागम-भाग व अपने दायित्वों को निभाया और बनाया। अब उनका बुढ़ापा सभी प्रकार से उत्तरदायित्वों से मुक्त रहने का हैं। बुजुर्गों को भी बच्चों की तरह समान, सहज और संभाल की जरूरत हैं। कुछ अपवादों को छोड़ क्या उनके साथ ऐसा बर्ताव हो रहा है? बुजुर्ग इस उम्र में अपने सम्मान व मान मर्यादा का पूरा हक रखता हैं। लेकिन आज के बेटे-बहुएं अपनी मर्यादाओं, कर्त्तव्यों की अवहेलना करते हैं। वे उनकी किसी भी विषय में सम्मति व सलाह लेना आवश्यक नहीं समझते। वे यह नहीं समझते कि बूढ़ा पेड़ फल तो नहीं देता पर छाया तो देता हैं। वे अपने मन के मालिक बनें रहते हैं। यदि कोई बात सुझाव दे भी देते तो उसकी अनदेखी होती है बल्कि सुनने को और मिलता है कि आप किस जमाने की बात करते हैं अपने उपदेश अपने पास रखिए, हमें बताने की जरूरत नहीं हैं। हम जो कुछ कर रहे हैं सब समझकर कर रहे हैं। आश्चर्य की वे उनसे पूर्ण स्वतंत्रता रखना चाहते हैं। कहीं भी जाने-आनें की उनको पूछने या स्वीकृति लेने की जरूरत ही नहीं समझते हैं। यहां तक भी बाहर जाते वक्त कहा जाता है कि आपका खाना रसोई में अलग थाली में रखा हुआ है आप ले लेना, और खा लेना। उनके पास बैठकर कोई भली-बुरी बात भी नहीं करते ऐसी ही शिक्षा अपने बच्चों को भी देते हैं। कई परिवारों में उनके साथ अभद्र व्यवहार व कठोर अपशब्दों का प्रयोग भी नहीं हिचकिचाते। लगता उन्हे माता पिता की दुआएं, संस्कार, आशीर्वाद नहीं चाहिए। अर्थात बुजुर्ग परिवार में उपेक्षित जीवन बिताने को मजबूर होते हैं। यदि कारणवश अपाहिज हो जाते तो यह सुनने को मिलता है कि ‘ ये न मरे न मांचा छोड़े’ बेटों व बहुओं को घर बड़े बुजुर्गों को भार नहीं बल्कि इनकी सेवा, सम्मान, हाजरी भरना अपने को भाग्यवान समझना चाहिए।
बुजुर्गों के लिए :- परम् सम्मानीय बुजुर्ग वर्ग आपके तन में तो उम्र के अनुसार कमजोरी आ गई हैं किन्तु मन में इस बुढ़ापे को मत आने दीजिए। किसी छोटी-बड़ी बात पर गुस्सा आदि न करना चाहिए आपकी सलाह को सम्मान दें तो कहना उचित है। अपने खान-पान को शुध्द सात्विक और संयमित रखिए। सारी उम्र भर कमाया हुआ धन बेटों में बांटते वक्त आप अपने पत्नी का हिस्सा भी रखिए। ताकि बच्चों के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़े। हल्का व्यायाम या प्रात:काल थोड़ा बहुत घूमने की आदत डालिए। समय पर अपने स्वास्थ्य की जांच कराते रहे। थोड़ा समय प्रभु की भक्ति, सत्संग व स्वाध्याय में भी लगावें। अपने आपको बूढ़ा या निशक्त नहीं समझें यह तो सभी के साथ उम्र का तकाजा आयेगा।
— सूबेदार रावत गर्ग उण्डू