राजनीति

आखिर न्यायोचित मांगों पर भी जेएनयू के छात्रों पर लाठीचार्ज क्यों ?

आज के लगभग सभी राष्ट्रीय समाचार पत्रों में केन्द्र सरकार द्वारा जेएनयू में मुख्यतः हास्टल फीस में अप्रत्याशित रूप से 400 प्रतिशत तक वृद्धि करने, शिक्षा के निजीकरण और व्यावसायीकरण करने जैसे अमानवीय कृत्य के विरोध में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों के अतिरिक्त दिल्ली के कई अन्य विश्वविद्यालयों के 4 हजार छात्रों के संयुक्तरूप से शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने और अपने विश्वविद्यालय परिसर से संसद भवन तक शांतिपूर्वक मार्च कर रहे, छात्रों को भारतीय संसद तक न पहुंचने देने के लिए इस देश की केन्द्र सरकार के कर्णधारों ने उसे बर्बरतापूर्वक कुचलने के लिए 800 दिल्ली पुलिस कर्मियों के साथ सीआरपीएफ और रैपिड एक्शन फोर्स की 20 कंपनियों को भी तैनात किया था।
समाचार पत्रों ने दिल्ली पुलिस द्वारा छात्रों को जिस निर्ममता और क्रूरतापूर्वक लाठियों से मारा-पीटा गया, उसके कुछ ऐसे वीभत्स फोटो प्रकाशित किए हैं, जिन्हें देखकर किसी भी सभ्य और शालीन व्यक्ति का दिल-दिमाग विचलित होने लगेगा तथा इस कथित लोकतांत्रिक देश की ‘सबका साथ सबका विकास’ का थोथा नारा देने वाली इस सरकार के कर्णधारों के असली और छद्म रूप तथा उनकी नीयत पर जबर्दस्त संशय और श़क होने लगता है, उदाहरणार्थ एक छात्र के सिर से लाठियों के जबर्दस्त चोट से फटकर खून की धारा निकलकर उसके चेहरे पर चारों तरफ से बह रहा है, एक छात्र को चार-पाँच पुलिस वाले सड़क पर निर्दयतापूर्वक घसीट रहे हैं, इसी प्रकार एक दूसरे दृश्य में एक छात्रा को भी घसीटा जा रहा है, एक अन्य दृश्य में एक पुलिसकर्मी एक छात्र पर इतने जबर्दस्त तरीके से लाठी उठाकर वार करता दिखाई दे रहा है जैसे लग रहा हो किसी भैंसे या सांप को वह निर्दयतापूर्वक जान से मारने को उद्यत हो।
आखिर समझ में यह नहीं आ रहा कि इस देश के पुलिसवाले और इस देश के कर्णधार लग रहा है जैसे ‘कोई विदेशी साम्राज्यवादी देश अपने गुलाम देश के नागरिकों को उनके जायज मांगों के लिए भी प्रदर्शन या जुलूस को जिस क्रूरता और वीभत्सतापूर्वक दमन करता था ‘, वैसे चरित्र क्यों अख्तियार किए हुए हैं ? क्या इस देश में शिक्षा को सबको पाने का अधिकार नहीं है ? क्या इस देश के साधारण लोगों, छोटे दुकानदारों, छोटे किसानों, दिहाड़ी मजदूरों, कम आमदनी वाले लोगों के बच्चों को पढ़ने और शिक्षित होने की इच्छा का दम घोंटकर, केवल कुछ चन्द बड़े नौकरशाहों, तस्करों, मॉफियाओं, सेठों, पूंजीपतियों के ही बच्चे पढ़ाकर इस देश का समावेशी विकास हो जायेगा ? क्या इस दमनकारी और अमानवीय व्यवहार करनेवाली सरकार को सत्ता में आने के लिए इस देश की आम जनता ने अपने मतदान का प्रयोग केवल ऐसे वहशी और क्रूर दमनकारी कुकृत्य करने के लिए ही किया था ?क्या फीस इतनी बढ़ाकर केवल चंद धनाढ्य वर्ग के बच्चों को शिक्षित करने मात्र से इस देश का भला हो जायेगा ?
‘आज छात्र केवल अपने लिए सड़कों पर नहीं उतर रहे हैं अपितु यह देश के उन हजारों-लाखों छात्रों के लिए उतर रहे हैं, जिनको सस्ती शिक्षा और रोजगार चाहिए’ के उद्देश्य से जेएनयू के छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं, तो इसमें उनकी मांगें ‘नाजायज ‘ और ‘गैरकानूनी ‘ क्यों और कैसे हो गईं हैं ? आखिर ये सरकार चाहती क्या है ? इसकी मंशा क्या है ? वास्तविकता और कटु सच्चाई यह है कि भारत में जेएनयू ही एक ऐसी यूनिवर्सिटी है जो खुले, स्वस्थ्य और लोकतांत्रिक विचारों को खुलकर अभिव्यक्त करने के एक संस्थान के रूप में पूरे देश और वैश्विक स्तर पर अपनी छवि बनाई हुई है और इसीलिए यही उसकी खुली छवि इस छद्म लोकतांत्रिक व पुरातनकालीन विचारों को पुनर्स्थापित करने को उद्यत इस सरकार के आँखों की किरकिरी बनने का कारण है! फीस बढ़ाना, ड्रेस कोड लागू करना, पुस्तकालयों में पढ़ने की समय सीमा निर्धारित करना आदि तो इस विद्यालय के छात्रों को हर तरह से प्रताड़ित करने का एक अतिनिंदनीय और एक कुत्सित तथा वहशी कुकृत्य है। इस सरकार के इस कुकृत्य की इस देश के हर नागरिक को विरोध और भर्त्सना करनी ही चाहिए, क्योंकि जेएनयू के छात्र केवल अपने लिए नहीं, अपितु इस देश के करोड़ों गरीब और मध्यवर्गीय लोगों के बच्चों के हित के लिए अपने सिर पर लाठियां खाकर खून बहा रहे हैं।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]

One thought on “आखिर न्यायोचित मांगों पर भी जेएनयू के छात्रों पर लाठीचार्ज क्यों ?

  • डाॅ विजय कुमार सिंघल

    छात्रों की माँगें कतई न्यायोचित नहीं हैं। लगभग मुफ्त में ही देश के करदाताओं के पैसों पर दशकों तक ऐश करने वाले और उस पर भी देश तोड़ने का नारा लगाने वाले तथाकथित छात्रों को सबक सिखाना आवश्यक है। होस्टल फीस में वृद्धि न्यायोचित है और अभी भी बहुत कम है। अन्य नियम भी सही हैं।

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