एक लड़की
एक लड़की …….
जन्म के साथ ही,
अफ़सोस के रूप में अपनायी जाती है।
जिसके कद के साथ साथ बढ़ती है,
पिता के माथे की लकीरें।
माँ के तानो, उलाहनों के बीच,
अपने वजूद को तलाशती,
जीवन से- जीने के लिये,
चन्द खुशनुमा लम्हे माँगती।
एक लड़की………
बार – बार हर बार ठुकराई जाती है।
शैशव में-
भइया की बोतल के
बचे दूध पर जीती।
चिलकती धूप में- सरकारी स्कूल की टिन की छत के नीचे,
फ्राक के किनारों से पोछती पसीना।
काली तख्ती पर सफेद खड़िया से लिखती सुनहरा भविष्य,
एक लड़की……….
बार – बार हर बार
भविष्य के नाम पर डराई जाती है।
यौवन में-
महसूस करती,
माँ की फिक्र, पिता की विवशता।
हर कदम नापती, तोलती बचती,
पीठ पर खुदी आँखो से।
हर शाम लेती सुकून की सांस,
सुबह की फिक्र के साथ।
पढने दो ना पापा! बुनने दो ना सपने!
गुड़िया हूँ तुम्हारी बोझ नही,
सम्भालूंगी तुमको हर सांस।
हर बार सहमी आँखों से,
पिता की स्वीकृति को मापती,
बार – बार हर बार,
पराई ही कही जाती है।
एक लड़की………
— अंजू अग्रवाल
शानदार