ग़ज़ल
चाह कर भी मुझको भुला न पाओगे,
मेरी वफ़ा को दिल से मिटा न पाओगे।
मेरी तरफ से तुम आजाद हो अब से,
मेरी यादों से कैसे जुदा हो पाओगे।
जिस तरफ देखोगे नजर मैं ही आऊंगी,
अपनी निगाहों में मेरी ही सूरत पाओगे।
मेरी चाहत में डूबे रहोगे तुम इस कदर,
अपने गीतों अपनी ग़ज़लों में मुझे ही गाओगे।
होकर बेचैन जब कभी थामोगे दिल अपना,
उसकी धड़कन में शुमार मुझको पाओगे।
— कल्पना सिंह
शानदार