“नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे”
मीत बेशक बनाओ बहुत से मगर,
मित्रता में शराफत की आदत रहे।
स्वार्थ आये नहीं रास्ते में कहीं,
नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।।
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भारती का चमन आप सिंचित करो,
भाव मौलिक भरो, शब्द चुनकर धरो,
काल को जीत लो अपने ऐमाल से,
गीत में सुर की धारा सलामत रहे।
नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।।
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आपकी बात से, ज्ञान गंगा बहे,
मन में उल्लास हो, गात चंगा रहे,
बन्दगी में दिखावा कभी मत करो,
आशिकी में भी शुचिता सलामत रहे।
नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।।
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मत घमण्डी बनो, बैर को छोड़ दो,
जिन्दगी सादगी की, तरफ मोड़ दो,
ढाई आखर का है बस यही फलसफा,
आदमीयत का ज़ज़्बा सलामत रहे।।
नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।।
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दिलरुबा नेह का धर्म तो जान लो,
आप अच्छा-बुरा कर्म तो जान लो,
‘रूप’ दरिया नहीं एक तालाब है,
साथ सूरत के सीरत सलामत रहे।
नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)