पहचान
17 साल से स्पीच थैरिपी क्लिनिक का संचालन कर रही सोनिया बहुत समय बाद रेडियो पर बजने वाले एक गीत को सुनकर अपनी स्मृतियों की देहरी पर विचरने लगी थी.
तब वह 7-8 साल की रही होगी, जब उसने रेडियो पर एक गीत सुना था-
”सुनो गजर क्या गाए, समय गुजरता जाए
ओ रे जीने वाले, ओ रे भोले भाले
सोना ना, खोना ना.”
रेडियो पर बजने वाले इस गीत को सुनकर छोटी-सी वह बच्ची मानो सोते से जग गई थी.
”ममा, आप कोई समाज सेवा का काम क्यों नहीं करतीं? सारा दिन खाना बनाने और घर की साफ-सफाई में ही निकल जाता है.” उसने मां से पूछा था.
”मैं क्या करूं बताओ तो, तुम लोगों को पढ़ा-लिखाकर काबिल जो बनाना है! अच्छा बताओ, तुम क्या समाज सेवा करोगी?”
”ममा मैं तो अभी ही समाज सेवा कर रही हूं.”
”अच्छा, सुनूं तो सही हमारी प्यारी-प्यारी गुड़िया रानी क्या समाज सेवा कर रही है!” ममा ने लाड़ लड़ाते हुए कहा था.
”मेरी क्लास में दो बच्चे ठीक से बोल नहीं पाते, उनको ठीक से बोलना सिखाती हूं.”
”यह तो वाकई बहुत बढ़िया समाज सेवा है!” मां ने उत्साह बढ़ाया था और पापा से किसी स्पीच थैरिपी वाले कोर्स पर नजर रखने को कहा था.
सचमुच पापा ने मुझे स्पीच थैरिपी-कोर्स करवा दिया था. मैंने काम शुरु भी दिया था, फिर शादी के बाद न्यूजीलैंड आना पड़ा.
”ढूंढो तो प्यार भी मिल जाता है” यहां तो महज कुछ विद्यार्थियों की खोज थी. उन्हें भी ढूंढना नहीं पड़ा, अपने आप सामने आ गए.
फिर क्या था! 17 साल से उसका स्पीच थैरिपी क्लिनिक तरक्की के रास्ते पर था. सरकार से सहायता भी मिल रही थी. बहुत-से बच्चों को उसने नौकरी भी दिलवाई थी.
”पहचान से मिला काम थोड़े समय तक रहता है,
लेकिन काम से मिली पहचान उम्र भर रहती है.”
सोनिया का काम ही उसकी पहचान थी.
बहुत सुन्दर
प्रिय सौरभ भाई जी, आपने कथा को पढ़कर प्रतिक्रिया दी, हमें अत्यंत हर्ष हुआ. आप गुरमैल भाई की प्रतिक्रिया और हमारा उत्तर पढ़ेंगे, तो आपको समझ में आ जाएगा कि हमने यह कथा गुरमैल भाई को ध्यान में रखते हुए ही लिखी है. जब सोनिया मुझे अपनी कथा बता रही थी, तो मेरे मन में गुरमैल भाई की असलियत घूम रही थी. हमारे लेखन से किसी को रत्ती भी प्रेरणा मिलती है और लाभ होता है, तो यह हमारे लिए अत्यंत हर्ष की बात होती है. लेखन धन्य हो जाता है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
बहुत अछि लघु कथा . अगर गले में कोई तब्दीली न आये तो इस स्पीच थैरपी से बहुत फायदा हो सकता है . जिस ढंग से यह स्पीच थैरपी होती है , मैं इस को बहुत अछि तरह जानता हूँ क्योंकि मैंने भी लैसन लिए थे लेकिन मेरे गले में ग्लैंड बढ़ जाने की वजह से इतनी कामयाब नहीं हो सकी. फिर भी घर के सदस्यों को धीरे धीरे समझा देता हूँ और यह इस स्पीच थैरपी की वजह से ही है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. रोज एक घंटा ”जिंदगी इक सफर है सुहाना” आपके जीवन का सफर सुहाना हो गया, यह हमें अच्छी तरह याद है. आप ऐसे ही रियाज करते रहिए, चमत्कार हो-न-हो, पर आपने जितनी सफलता प्राप्त की है, उसमें इज़ाफ़ा होता रहेगा. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
सोनिया का काम ही उसकी पहचान थी. अनेक परीक्षण करने के बाद वह यह सुनिश्चित करती थी, कि उसको स्पीच थैरिपी कैसे देनी है. सबसे पहले वह पीड़ित से यह वादा करवा लेती थी कि उसे सकारात्मक होकर स्पीच थैरिपी चालू ही रखनी है, बंद नहीं करनी है. कब कोई चमत्कार हो जाए, पता नहीं. उसके काम को समाज और फिर सरकार ने भी पहचान दी, सच है- ‘काम बोलता है.’.