संस्मरण

मेरी कहानी 167

मैं और गियानी जी उठ कर गियानी जी के कमरे में आ गए। यह कमरा घर का फ्रंट रूम ही था। वैसे तो यह कमरा महमाननिवाज़ी के लिए था लेकिन गियानी जी के लिए यह कमरा सब कुछ था, यहाँ अपने दोस्तों से वे गियान गोष्ठी भी किया करते थे और स्ट्डी रूम के तौर पर भी इस को इस्तेमाल करते थे । उन की उम्र अब काफी हो गई थी और अकेले टाऊन को जाते नहीं थे। कोई काम हो तो कुलवंत उन्हें ले जाता था। गियानी जी में एक तब्दीली आई थी, पहले उन का विचार होता था कि जो लोग गुरबाणी की कैसेट सुनते हैं, वोह गुरबाणी की इज़त नहीं करते क्योंकि यह टेपें खामखाह इधर उधर पड़ी रहती है और इस के खराब होने पर इस को यूं ही फैंक देते हैं, जो गुरबाणी की बेइज़ती करते हैं। अब वोह यह टेपें सुनने लगे थे कि इन में बहुत बातें अछि भी होती हैं जो धर्म के बारे में जानकारी देती हैं। इन टेपों के लिए उन्होंने एक स्पैशल शैल्फ रखी हुई थी और इसके आगे बहुत सुन्दर कपडे का पर्दा लगाया हुआ था और बड़ी इज़त के साथ रखते थे। किसी टेप के खराब होने पर वोह इस को अग्नि भेंट कर देते थे। हर धार्मिक किताब को उन्होंने कपडे में लपेटकर रखा हुआ था। आज इस कमरे में जब आये तो आते ही एक किताब उठा लाये और बोले,” देख गुरमेल ! यह किताब एक पाकिस्तानी मुसलमान ने लिखी है, इसको लिखने में उसको पांच साल लगे और उसने पाकिस्तान के वोह सभी गुरदुआरों को बड़ी डीटेल में लिखा है, सभी गुरदुआरों की फोटो उसने दी है, यहां तक कि यहां किसी गुरदुआरे की दीवार भी बची है, उसका भी इतिहास लिखा है कि वहां किस नाम से गुरदुआरे होता था और साथ ही उसकी फोटो भी दी है । सभी गुरदुआरों के नाम जो ज़मीन होती थी, उसको भी डीटेल में लिखा है। उसने इसे पंजाबी उर्दू और इंग्लिश में लिखा है। जो काम हमारा कोई सिख नहीं कर सका वोह इस शख्स ने कर दिखाया है। इतनी अछि किताब ज़िन्दगी में मैंने पहली दफा देखी है।
बातें कर ही रहे थे कि गियानी जी के एक दोस्त कर्म सिंह आ गए। वैसे तो गियानी जी से मुलाकात के लिए लोग आते ही रहते थे लेकिन उनके चार दोस्त तो एक दूसरे के बहुत करीब थे। इनमें से ही यह कर्म सिंह जी थे। इनका बड़ा लड़का गुरदुआरे में तबला बजाया करता था और छोटा लड़का कभी मेरे साथ बस्सों में काम करता था लेकिन बाद में वोह किसी और शहर में चला गया था। इन सब दोस्तों का एक ही शौक और एक ही राये होती थी। यह सब मिलकर गुरु ग्रन्थ साहिब जी का एक पत्रा पढ़ते थे और उसके अर्थों को समझ, गुरबाणी विचार करते थे। इस काम में उनको एक साल या कई दफा ज़्यादा भी लग जाता था। आखर में वोह ग्रन्थ साहब जी का भोग पाते और आपस में मिलकर प्रसाद लेते और घर वालों को भी बांटते। पता नहीं कितने पाठ उन्होंने इस तरह किये होंगे। कर्म सिंह और गियानी जी बातें करने लगे। मैं उठकर जाने के लिए तैयार हुआ तो गियानी जी बोले, ”नहीं अभी नहीं तू जा सकता“, उनका हुकम मैं टाल नहीं सकता था, वैसे भी ऐरन को स्कूल से लेने को अभी काफी वक्त था। बातें करते करते पंडित अमृत लाल की बातें होने लगीं।
पंडित अमृत लाल उनके बहुत प्रिय दोस्त थे। जब इंगलैंड में आये थे तो दोनों एक ही फैक्ट्री गुड़ ईअर टायर में काम किया करते थे। अमृत लाल कई भाई थे। दो भाई हर्बलास और हरिदत्त तो मेरे साथ ही मैट्रिक के दिनों में मेरी ही क्लास में होते थे, जब 1956 58 में हम फगवाड़े रामगढ़िया हाई स्कूल में पढ़ा करते थे। एक भाई जगदीश किराए पर उसी घर में रहा करता था, जहां गियानी जी, मैं और गियानी जी के बेटे जसवंत रहा करते थे। पंडित अमृत लाल हर रविवार के दिन हमारे पास आया करते थे और बाद में जब मैंने घर ले लिया था और गियानी जी हमारे साथ आ गए थे तो तब भी पंडित जी हमारे घर आकर गियानी जी से बातें करते रहते थे। कुलवंत भी पंडित जी की बहुत इज़त करती थी और उस के लिए चाय बनाती थी। इसी पंडित अमृत लाल के जमाई वरिंदर शर्मा लंडन में पुराने और प्रसिद्ध लेबर एमपी हैं। पंडित जी के साथ गियानी जी की सियासत की बातें होती ही रहती थी लेकिन उस समय सियासत के बारे में हमें कोई दिलचस्पी नहीं होती थी। ” गियानी जी ! देखना ! यह नासर इजिप्ट को कितना ऊंचा लेकर जाएगा क्योंकि नेहरू जब इजिप्ट गया था तो उसने ही नासर को कहा था कि वोह नहर सुएज को नेशनलाइज करे, इसीलिए नहर सुएज नैशलाइज़ हो सकी“, ऐसी बातें पंडित जी के मुंह से हमेशा निकलती रहती थी और जिस दिन 1967 में नासर लड़ाई में इज़राईल से हार गया था तो उस समय पंडित जी बहुत उदास थे।
अब गियानी जी, पंडित जी से कुछ नाराज़ थे और उनका यह मिलन समझो ख़तम ही हो गया था। बाहर कभी टाऊन में मिलते तो सरसरी हैलो हैलो हो जाती, वरना एक दूसरे के घर जाना ख़तम हो गया था। कर्म सिंह और गियानी जी ने पंडित जी के बारे में किया किया बातें कीं, मुझे ज़्यादा याद नहीं लेकिन उनके एक दूसरे के रोष का मुझे पता था। बात थी इंद्रा गांधी का हरिमंदिर साहब पर हमला करना । जिस दिन हरिमंदर साहब पर हमला हुआ, गियानी जी को किसी ने बताया कि अमृत लाल ने इस हमले की ख़ुशी में लड्डू बांटे थे। गियानी जी भिंडरावाले के बहुत खिलाफ थे। वोह समझते थे कि हथियार लेकर हरिमंदिर की चारदीवारी में मोर्चा लगाना किसी तरह से भी उचित नहीं था। सिखों को उनका अमृत छकाकर धर्म के रास्ते पर लाना बहुत अछि बात थी लेकिन हथियार लेकर वहां इकठे होना बिलकुल गलत था लेकिन जो इंद्रा गांधी ने हरिमंदिर साहब पर इतनी बड़ी फ़ौज के साथ इस पवित्र अस्थान पर हमला किया और अकाल तख़्त को बर्बाद कर दिया, वोह सिख जगत में एक नीच हरकत से जानी जायेगी। भिंडरांवाले और उनके साथियों को पकड़ने के और बहुत तरीके थे, उनका राशन पानी बन्द कर देते, वहां गैस फैंक देते। फ़ौज के पास बहुत तरीके होते हैं, पुराने ज़माने में साल साल भर किले को घेरी रखते थे और आखरकार हथियार फैंकने पड़ते थे। पंडित अमृत लाल ने लड्डू बांटे थे, यह जानते हुए भी कि गियानी जी की हरिमन्दिर साहब के प्रति कितनी श्रद्धा थी। कोई समय था पंडित अमृत लाल और गियानी जी की एक जान होती थी लेकिन इसके बाद यह सब ख़तम हो गया। मुझे याद है गियानी जी इंद्रा गांधी की बहुत इज़त किया करते थे। जब हम कार्टर रोड पर रहा करते थे तो एक दफा मेरा दोस्त बहादर और उसका छोटा भाई लड्डा मुझे मिलने आये। बातों ही बातों में लढ्ढे ने इंद्रा गांधी के खिलाफ कुछ अपशब्द बोल दिए। गियानी जी तिलमिला उठे और बोले, ”तुम्हें शर्म आणि चाहिए हमारे देश के प्रधान मंत्री के खिलाफ ऐसे शब्द बोलने के लिए“, लड्डा भी गर्म होता था, वोह कुछ बोलने ही लगा था कि मैं उसको पकड़कर बाहर ले गया।
आज गियानी जी इंद्रा गांधी के बहुत खिलाफ थे और भिंडरावाले को सही ठहरा रहे थे कि उसने सही किया था। परसथितीआं कैसे विचारधारा को बदल देती हैं। अक्सर वोह बात करते थे कि इंद्रा गांधी ने मक्का ढा दिया, सोमनाथ ढा दिया, आज सिख अपने ही देश में बिदेशी हो गए थे। मुझे नहीं पता कि जब इंद्रा गांधी को उनके ही अंगरक्षक दो सिखों ने मार दिया था तो सिखों के कत्लेआम पर वोह कितने दुखी हुए होंगे क्योंकि बहुत देर तक उनसे मैं मिलने गया नहीं था। बहुत देर बाद गया था लेकिन इस बारे में कभी बात नहीं हुई थी। आज कर्म सिंह और गियानी जी बहुत बातें कर रहे थे और बहुत सी बातें मुझे याद नहीं। इतना याद है कि गियानी जी, कर्म सिंह को भी वोह किताब दिखाने लगे। आपस में वोह देश विभाजन के बारे में बातें करने लगे क्योंकि दोनों ने बहुत से पाकिस्तान के गुरदुआरे देखे हुए थे और सारा पंजाब पहले एक ही होता था। बहुत देर तक मैं चुप था, फिर मैंने सवाल कर दिया, ”गियानी जी ! आपको कभी गुरदुआरे में नहीं देखा“, ऐसे सवाल मैं जब कार्टर रोड पर रहता था, करता ही रहता था। जो वोह जवाब देंगे, बहुत कुछ मुझे पता ही होता था लेकिन उनका जवाब देने का ढंग ऐसा होता, जैसे कोई कहानी सुना रहे हों और मैं बहुत धियान से सुनता था। गियानी जी बोले, ”गुरमेल ! तुझे पता ही है कि गुरदुआरे तो मैं पहले भी बहुत कम जाता था लेकिन अब तो बिलकुल बन्द कर दिया है। कोई शादी विवाह हो तो कुलवंत अपने परिवार के साथ चला जाता है, मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है, वहां है ही किया, सब कर्म कांड है, गुरबाणी सुनकर ना कोई समझता है, ना इन लोगों को धर्म के बारे में कोई गियान हासिल हुआ। लोग गुरदुआरे जाते जाते बूढ़े हो गए हैं लेकिन अभी तक दस गुरु सहबान के नाम याद नहीं हुए, कितनी दफा गुरदुआरे में लड़ाइयां हुई, कोई अंत नहीं, खुद जूते उतारकर महाराज के हज़ूर जाते हैं और पुलिस बूटों समेत गुरदुआरे में घुस जाती है, दूर किया जाना है, तेरी बीबी है, उसको सारी उम्र समझा समझा कर थक गया लेकिन माथा टेकने के सिवाए इसको कुछ पता नहीं, मेरा लड़का और तेरा दोस्त जसवंत मुझसे कुछ नहीं सीख पाया “, गियानी जी कुछ चुप हो गए।
मैं बोला, ” गियानी जी इस का किया कारण है कि आज धर्म, कर्म काण्ड बन कर ही रह गया है “, गियानी जी बोले, गुरमेल ! कारण है पैसा, वोह भी सिंह थे जिन्होंने बगैर तन्खुआह के मुगलों के खिलाफ लड़ाइयां लड़ीं, मुग़ल लूट मार करके हमारी बहु बेटियों को ले जाते थे और सिख अचानक मुग़ल फ़ौज पर आक्रमण करके लड़कियां छुड़ा लाते थे और उन को इज़त के साथ उन के घरों में पहुंचा देते थे और आज के सिखों का जो चलन है, उस को गिरावट नहीं कहेंगे तो और किया कहेंगे ?, इंगलैंड का कोई गुर्दुआरा है ?, जिस का केस कोर्ट में ना गया हो, गुरदुआरे में अखंड पाठ करवाते हैं क्योंकि उस भगवान् से कुछ माँगना है, यह भगवान् को घूस ही है कि भगवान् ! अब मैंने अखंड पाठ करवा दिया है, और तू मेरे सारे काम सही कर दे, यही तो कारण है कि घूस जैसी नामुराद बीमारी हमारे खून में रच गई है, अमीर लोग मंदिरों में करोड़ों अरबों रूपए का सोना दान तो कर देंगे लेकिन गरीब को एक रोटी भी नहीं खिलाएंगे क्योंकि भगवान् को देना तो एक इन्वेस्टमेंट है और गरीब किया देगा “, गियानी जी चुप हो गए क्योंकि कर्म सिंह उठ खड़ा हुआ था और जाने को तैयार था। कर्म सिंह जी बैठ जाओ, चाय पी कर जाना लेकिन कर्म सिंह को कोई काम था, इस लिए सत सिरी अकाल बुला कर चले गया। दरवाज़े का खटाक सुन कर कुलवंत भी आ गई और बोली, ” अब हम को जाना चाहिए, ऐरन को स्कूल से लेना है “, ” जल्दी जल्दी आया कर भई, कार में ही आना है, कौन सा पैदल चल कर आना है “, गियानी जी बोले। बीबी भी आ गई और कुछ देर बातें करके हम ने विदा ली।
गियानी जी अब रहे नहीं लेकिन आज भी हम उन की बातें करते ही रहते हैं। गियानी जी का बड़ा लड़का जसवंत जिस के साथ मेरी दोस्ती बहुत होती थी, उस की आदतें गियानी जी के बिलकुल विपरीत थी और इस उम्र में अब भी हैं, जसवंत का शौक बस एक ही था और वोह था पब को जाना और खूब पीना और अब तक उस का वोही हाल है, जिस को गियानी जी पसंद नहीं करते थे और यही कारण था कि वोह अपने छोटे लड़के कुलवंत और उस की पत्नी कश्मीरों के साथ रहते थे। जसवंत के बारे में गियानी जी अक्सर कहा करते थे कि वोह उस को समझा समझा कर थक्क गए थे, ” गुरु नानक देव जी के दोनों बेटे श्री चन्द और लख्मी दास अपने बाप गुरु नानक देव जी को नहीं समझ सके, उन की बहन बेबे नानकी ने उन को समझा था, यह तो बस किस्मत की बात है” गियानी जी उदास भरे लहज़े में अक्सर बोलते। गियानी जी की दोनों बेटीआं बंसो और छिंदी कभी कभी हमें मिलने आ जाती हैं और बातें करते करते फिर उन दिनों की बातें करने लगते हैं। उन दिनों हम दो बैड रूम के घर में तेरह मैम्बर रहते थे और कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ था। छिंदी अक्सर हंस कर बोलती रहती है,” भा जी ! हम तेरह मैम्बर छोटे से घर में रहते थे और आज उस के छोटे से पोता पोती कहते हैं, बीबी ! दिस इज अवर रूम “,

One thought on “मेरी कहानी 167

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, गियानी जी का ज्ञान और आपकी प्रस्तुति लाजवाब लगी. सही है- ”गुरु नानक देव जी के दोनों बेटे श्री चन्द और लख्मी दास अपने बाप गुरु नानक देव जी को नहीं समझ सके, उन की बहन बेबे नानकी ने उन को समझा था, यह तो बस किस्मत की बात है.”

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