तन्हाई
अकेलेपन की आहट से मन जरा सा घबराया,
किसके साथ गुजारूं शाम जब खयाल आया।
सन्नाटा दबे पांव आकर कानों में कुछ बुदबुदाया,
भटकती आंखों को कहीं न कोई भी नजर आया।
खाली कमरे में गूंज उठी सिसकियां मेरी,
तेरा ख्याल आते ही जब जी मेरा भर आया।
ये मालूम है कि कद्र नहीं मेरे प्यार की तुझको,
न जाने फिर भी क्यों तेरी बातों पर एतबार आया।
यूं तो अब इंतजार की कोई वजह ही नहीं बाकी,
जाने क्यों फिर भी बंद आंखों में तेरा ख्वाब आया।
— कल्पना सिंह