लघुकथा

पापा ’पैसा क्यूॅ नहीं रखते?‘

बीच चैराहे पर कुछ नवांकुर आइसक्रीम चाटते हुए बतिया रहे थे। बीच बीच में विभिन्न प्रकार से मुख-आकृति बना बनाकर स्वाद का आनन्द लेने का अभिनय करते। कभी चिड़ियों की तरह चहकते। आइसक्रीम वाला रह रहकर साईकिल में बॅधा अपना भोंपू बजाता रहता ताकि अधिक से अधिक बच्चे घर से पैसे लेकर निकलंे और आइसक्रीम की विक्री बढ़ जाय।
इसी बीच रामू रेहरी का सामान पीठ पर लाद कर नहर किनारे बेचने जा रहा था। आज उसके साथ उसका छोटा लड़का भी अॅगुली पकड़कर चल रहा था। कभी कभार बाप के साथ जिद वश वह जाया करता ।
आइसक्रीम चाट रहे बच्चों को देखकर उसने भी पापा से आइसक्रीम के लिए जिद की। रामू भी क्या करता दो तीन दिन से उसकी दुकान पर बोहनी तक नहीं हुई थी। उसने धीरे से कहा ’अभी पैसे नहीं हैं , चुपकर!’

बच्चे की उमर अभी इतनी नहीं थी की वह पिता की मजबूरी समझ पाता। पिता का उत्तर सुनकर लड़का तपाक् से बोल बैठा-
“पापा ! पैसा क्यों नहीं रखते?“
रामू भला उसे क्या समझाता ; वह भी सबके सामने ? वह चुपचाप किनारे से नजरें झुकाता हुआ निकलता रहा ।

आइसक्रीम वाले का भोपू रुक रुक कर बजता रहा। किंतु उससे अधिक बाप- बेटे के प्रश्नोत्तर हवाओं में गूॅजते रहे। एक प्रश्नवाची चिह्न की तरह…

— मोती प्रसाद साहू

मोती प्रसाद साहू

जन्म -1963 वाराणसी एक कविता संग्रह-पहचान क्या है प्रकाशित विभिन्न दैनिक पत्र-पत्रिकाओं ;ई0 पत्रिकाओं में रचनाओं का नियमित प्रकाशन संपर्क 9411703669 राजकीय इण्टर कालेज हवालबाग अल्मोड़ा उ0ख0 263636 ई0 मेल- [email protected]