स्वास्थ्य

प्राकृतिक चिकित्सा क्या है?

हमारा शरीर पाँच प्रमुख तत्वों से बना है- ‘क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच तत्व यह रचित शरीरा।।’ यदि किसी कारणवश हमारा शरीर अस्वस्थ हो गया है, तो इन्हीं पाँच तत्वों (मिट्टी, पानी, धूप, हवा और उपवास) के समुचित प्रयोग से पुनः स्वस्थ हो सकता है। यही प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान है। प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है कि रोग हमारी भूलों अर्थात् गलत जीवन शैली के परिणामस्वरूप होते हैं और शरीर से विकारों को निकालने के माध्यम हैं। यदि हम अपनी भूलों को सुधार लें और विकारों को निकालने में प्रकृति की सहायता करें, तो फिर से पूर्ण स्वस्थ हो सकते हैं। यह प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान का मूल सिद्धांत है।

वर्तमान में प्राकृतिक चिकित्सा को एक स्वतंत्र चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता दी गयी है। वास्तव में यह आयुर्वेद का ही एक अंग है। इसकी कई क्रियाएँ आयुर्वेद में पहले से शामिल हैं। आयुर्वेद में इसका उपयोग सहायक उपायों के रूप में किया जाता है। लेकिन आयुर्वेद का प्रसार घटने और अच्छे वैद्यों की कमी के कारण एवं उनका जोर दवाओं पर अधिक हो जाने के कारण अब आयुर्वेदिक वैद्य इन क्रियाओं को भूल गये हैं। दूसरी ओर, आजकल रोगी भी किसी क्रिया को करने के झंझट में नहीं फँसना चाहते और केवल ऐसी दवाएँ चाहते हैं, जिन्हें खाकर पड़े रहें और ठीक हो जायें। इसलिए वे प्राकृतिक चिकित्सा करने में हिचकते हैं।

अन्य चिकित्सा पद्धतियों से प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति इस प्रकार भिन्न है कि इसमें दवाओं का पूर्णतः निषेध होता है। वास्तव में इसमें भोजन को ही दवा के रूप में ग्रहण किया जाता है, क्योंकि दवाइयों से जिन आवश्यक तत्वों की पूर्ति की आशा की जाती है, वे सभी तत्व विशेष प्रकार से चुने हुए भोजन में उपलब्ध हो जाते हैं। इसलिए वास्तव में हमारे शरीर को दवाइयों की कोई आवश्यकता नहीं है। प्राकृतिक चिकित्सा की क्रियाओं के साथ योग और प्राणायाम को शामिल कर लेने पर यह एक सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति बन जाती है।

यह समझना भूल होगी कि दवा रहित हर चिकित्सा प्रणाली प्राकृतिक चिकित्सा है। कई प्राकृतिक चिकित्सक इस पद्धति के साथ नये-नये प्रयोग करते रहते स्वमूत्र चिकित्सा, एक्यूप्रैशर, एक्यूपंक्चर, चुम्बक चिकित्सा, रेकी आदि को प्राकृतिक चिकित्सा का अंग नहीं माना जा सकता, भले ही इनमें भी दवा नहीं ली जाती। यदि इनको प्राकृतिक चिकित्सा माना जाये, तो झाड़-फूँक चिकित्सा को भी प्राकृतिक चिकित्सा मानना होगा, क्योंकि उसमें भी दवा नहीं ली जाती। रेकी वास्तव में जापानी या कोरियाई झाड़-फूँक चिकित्सा ही है। ऐसी प्रवृत्ति उचित नहीं है। प्राकृतिक चिकित्सा अपने आप में हर तरह से सम्पूर्ण है। मालिश, योगासन और प्राणायाम भी इसके स्वाभाविक अंग हैं। इनसे किसी भी रोग और रोगी की सफल तथा स्थायी चिकित्सा की जा सकती है।

इस लेखमाला की आगे की कड़ियों में मैं प्राकृतिक चिकित्सा की प्रमुख क्रियाओं के बारे में बताऊँगा, जो अपने घर पर ही घरेलू वस्तुओं से बिना किसी कठिनाई के सरलता से की जा सकती हैं और उनका पूरा लाभ उठाया जा सकता है।

— डाॅ विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]