ग़ज़ल
फ़र्ज़ सरकार का अदा न हुआ।
सिर्फ बातों से कुछ भला न हुआ।
खाक़ ग़ज़लें कहेगा महफ़िल में,
शायरी का जिसे नशा न हुआ।
दूर मुझसे वो हो गया लेकिन,
दर्द उसका मगर जुदा न हुआ।
सब दलीलें मेरी गयीं मानी,
पर मेरे हक़ में फैसला न हुआ।
लोग उसको ज़हीन कहने लगे,
मेरी नज़रों में जो बड़ा न हुआ।
अनगिनत रब ने गो नबी भेजे,
आदमीफिर भीक्यूँभला न हुआ।
परवरिशही कुछ इस तरह से हुई,
काम कोई कभी बुरा न हुआ।
— हमीद कानपुरी