व्यंग्य – बहाने की बात ही और है जनाब
मेरे दौर में एक गाना गूंजता था,जो प्राण साहब पर फिल्माया गया था —“कस्मे-वादे प्यार-वफ़ा सब वादे हैं वादों का क्या ?” ।इसी तरह से एक और गाना इसके बाद फ़िजां में गूंजा था- “पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए ।” तो ये गाने सुनकर मैंने पक्की धारणा बना ली थी कि कोई कुछ भी कहे पर हक़ीक़त में यह ज़माना हवाहवाई है ।आपको कोई काम करना हो और यह डर हो कि लोग क्या कहेंगे,तो आप लोगों को सहमत करने,और ख़ुद को सही सिध्द करने के लिए बहाने गढ़ लीजिए ,पर इसके लिए आपको बहाना बनाने की कला में माहिर होना पड़ेगा ।
एक मुहावरा भी तो चलता था,अभी भी चलता है कि-” न नौ मन तेल होगा,न राधा नाचेगी ।” वास्तव में यह ज़माना बहानों का ही है,और जो शख़्स जितना बड़ा बहाना बनाने में सक्षम होता है,वह उतना ही बड़ा सुपर हिट सिध्द होता है ।पार्टियां अपने एजेंडो में तो बड़ी-बड़ी बातें करती हैं,पर काम कुछ नहीं करतीं ,और फिर कह देती हैं-” अरे भाई वो तो जुमला था, तुम जुमले को सीरियसली काहे ले बैठे।अब ले बैठे, तो यह तुम्हारी ग़ल्ती है ।” बस वादे से मुक्ति मिल गई ।
अगर आपकोअपनी नीतियों के गुणगान करने हों,तो खुलकर ख़ूब बखान कीजिए, और फिर कह दीजिए कि नीतियों में कोई कमी नहीं थी,बस वो तो विपक्षियों ने गड़बड़ कर दी, नहीं तो सारे देश का नक्शा बदलने ही वाला था। भैया,सच्चाई तो यही है कि अगर आपको आगे बढ़ना है तो नित नये बहानों को ईज़ाद करने में परफेक्शन हासिल कीजिए,नहीं तो घर में बाईजी और ऑफिस में आईजी मतलब आपके बॉस आपका जीना मुहाल कर देंगे ।वैसे जो शख़्स बहाने बनाकर दूसरे पर दोष मढ़ने में पारंगत हो जाता है ,वह तो पद्मश्री का हक़दार भी हो जाता है ।घर और ऑफिस में लेट होने पर बीवी और अफसर से डांट खाने से यदि आपको बचना है,तो बहाने बनाने में ट्रेंड हो जाइए ।वैसे अगर आपको बहाने बनाने में महारत हासिल करनी है,तो नेताओं का आभार सहित अनुसरण कीजिए ।फिल्मकारों की शरण में जाना भी फायदेमंद हो सकता है,क्योंकि जब उनकी घटियातम् फिल्म(जिसका फेल होना पहले से ही तय था) सुपर फ्लॉप हो जाती है ,तो वे पब्लिक की मानसिकता पर सारा दोष मढ़कर अपने नाक़ारापन से सहज मुक्ति पा जाते हैं ।
वास्तव में,बहाना बनाने के लिए चतुराई की ज़रूरत होती है ।वैसे बहानेबाज़ी का काम उतना आसान नहीं होता है,जितना समझ लिया जाता है ।वैसे बहानेबाज़ी के लिए ज़बरदस्त कॉन्फीडेंस की ज़रूरत होती है। इसकी कमी के चलते आपके बहाने की हवा भी निकल सकती है,आपकी पोल खुल सकती है,और आपकी भद्द पिट सकती है ।वास्तव में,बहानेबाज़ी के लिए लम्बे अनुभव की ज़रूरत होती है ।यह सार्वजनिक सत्य है कि आज के दौर में जो जितना बड़ा बहानेबाज़ ,वह उतना बड़ा कामयाब ।
तो,मेरा तो आपको यही मशविरा है कि नये-नये बहाने गढ़ने और फेंकने का तज़ुर्बा हासिल कीजिए,और कामयाबी की राह पर आगे बढ़ जाइए ।बहाने की बात ही और है जनाब ।
— प्रो. शरद नारायण खरे