हमने अपने लाखों मेहमान पक्षियों को मार डाला!
‘मेहमां जो हमारा होता है,
वो जान से प्यारा होता है ‘
उक्त पक्तियाँ अमर गीतकार स्व.शैलेन्द्र जी का लिखा है और भारत के जन-जन के होठों पर सदा इस गीत को गुनुनाते और उस जैसा ही व्यवहार को चरितार्थ करते आप सर्वत्र सुन और देख सकते हैं,परन्तु अभी पिछले दिनों इस देश के सबसे बड़ी खारे पानी की राजस्थान की सांभर झील में इस पृथ्वी के सबसे उत्तरी छोर रूस के साइबेरिया,अफ्रीका महाद्वीप के विभिन्न झीलों और उत्तरी ध्रुव के निकटस्थ यूरोप के देशों से दसियों हजार किलोमीटर की अविराम,कष्टकारी और थका देने वाली यात्रा के बाद,लाखों सालों से आने वाले,अपने सैकड़ों प्रजाति के मेहमान पक्षियों का स्वागत करने के बजाय,हम सांंभर झील के किनारे के रेगिस्तान को उन लाखों पक्षियों को अपने पैसे की हवश और लोभ-लालच से सांभर झील के पानी को बिषाक्त बनाकर,उन्हें मारकर उनका सामूहिक तौर पर कब्रिस्तान जरूर बना दिए हैं!
इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र के अनुसार साभर झील में प्रति वर्ष 50 हजार फ्लेमिंगो और एक लाख वेडर्स नामक पक्षियों सहित नॉदर्न शावलर,पिनलेट,कॉमन टील,रूडी शेलडक,ब्लैक शेल्डर काइट,कैस्पियन गल,सेंड पाइपर,लिटिल रिंग्स प्लोवर,ब्लैक हेडेड गल आदि सैकड़ों तरह के दो से तीन लाख तक प्रवासी पक्षी एक निश्चित मौसम में प्रतिवर्ष आते हैं। लगभग 190 से 230 वर्ग किलोमीटर के विस्तृत क्षेत्र में फैली सांभर झील के नमकीन पानी के चारों तरफ के किनारों पर हजारों वैध-अवैध नमक बनाने की फैक्ट्रियों और इस झील को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से वहां खुले हजारों ढाबों,होटलों आदि से निकले प्रदूषण युक्त और रसायनयुक्त पानी को बगैर रोक-टोक के सांभर झील में ही डाल देने से झील में उत्पन्न कुछ खतरनाक किस्म के वाइरस आदि के कारण पिछले दस-ग्यारह दिनों से प्रतिदिन दसियों हजार पक्षी मर रहे हैं,सैकड़ों किलोमीटर के विस्तृत क्षेत्र में फैले पक्षियों की सही गिनती तो हो ही नहीं सकती फिर भी एक गैरसरकारी प्रामाणिक खबरों के अनुसार इस महामारी में अब तक लाखों की तादाद में हमारे यहाँ आए प्रवासी मेहमान पक्षी मौत के मुँह में जा चुके हैं।
केन्द्रीय वन एवम् पर्यावरण मंत्रालय, केन्द्रीय रक्षा अनुसंधान तथा बरेली की आइबीआरआई लैब के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों और पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार झील में लाखों की तादाद में मरने वाले पक्षियों के कुछ निम्नलिखित संभावित कारण रहे हैं यथा इस इलाके में बीसियों सालों के बाद इस साल खूब बारिश होकर यह झील लबालब भर गई
है,काफी दिनों से बारिश न होने की वजह से नमक जहरीला हो जाता है,जिससे सबसे पहले पानी में रहने वाले सूक्ष्म जीव जैसे क्रस्टेशियन्स, इनवर्टिव्रेट्स,प्लेंक्टोंन्स आदि पहले विषाक्त होकर मरे,उन बिषाक्त सूक्ष्म जीवों को खाते ही पक्षियों की दम घुटने से मौत होने लगी,उन मरे पक्षियों के शवों में कीड़े पड़ गये,जिन्हें वहाँ उपस्थित अन्य पक्षी खाये और इसी प्रक्रिया की एक चेन बनने से क्रमशः लाखों पक्षी मरते चले गये। कुछ पक्षी वैज्ञानिकों के अनुसार सांंभर झील की मिट्टी में एवियन बॉटुलिज्म नामक कीटाणु हैं,जो पक्षियों के शवों में सक्रिय हो जाते हैं, उनके शवों को खाने वाले पक्षियों में ये क्लॉस्ट्रडियम बॉटुलिज्म नामक कीटाणु से उन्हें लकवा मार गया,कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार पक्षियों के लंबे प्रवास में हुई कमजोरी, पर्याप्त भोजन न मिलने और प्रदूषण तथा झील के चारों तरफ फैली फैक्ट्रियों से कोई बिषाक्त रसायन पानी में मिलने से भी पक्षियों की मौत की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
सबसे दुःख की बात यह है कि बॉटुलिज्म नामक बिमारी की अब तक कोई दवा या वैक्सीन भी उपलब्ध नहीं है! सब मिलाकर सच्चाई यह है कि इन लाखों मेहमान पक्षियों को हमारे लोभ-लालच और हमारी हवश ने उन्हें अपने स्थाई घर से हजारों किलोमीटर दूर जाकर अपने प्राण गवाने पड़े। निश्चित रूप से सांभर झील का किनारा अगर स्वाभाविक रूप से प्राकृतिक और वहाँ का पर्यावरण स्वच्छ रहता तो उस स्थिति में इन लाखों मेहमानों को दुःखद रूप से असमय काल के गाल में नहीं जाना पड़ता! अब लाखों की संख्या में बड़े झुँड में आए पक्षियों का बड़ा समूह कुछ सौ या हजारों की संख्या के छोटे झुंड में अपने वतन को वापस लौटेंगे तो यही सोच रहे होंगे कि ‘हमारे लाखों साथी आखिर क्यों तड़प-तड़पकर मर गये? ‘ या ‘हम फिर ऐसी संहारक जगह पुनः कदापि नहीं आएगें! ‘ और वे भविष्य में कभी सांभर झील जैसी लाखों पक्षियों के कब्रगाह स्थल पर भविष्य में आना ही बन्द कर दें।
— निर्मल कुमार शर्मा