अंतिम चेतावनी (विजेता लघुकथा)
”मैं तो फिर भी युग-युगांतर तक बची रहूंगी, सर्वनाश होगा तो तुम्हारा ही होगा. मानव तुम अभी न संभले तो कभी नहीं संभल पाओगे, अपनी ही लाचारी से विवश और पंगु हो जाओगे.”
”कौन हो तुम?” आवाज सुनकर मानव ने चहुं ओर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया, बस कटकर गिरते पेड़ों के चीत्कार और नष्ट होते हुए पक्षियों के घोंसलों की कराहट का आभास-सा हो रहा था.
”अभी तुम जीवनदाई वृक्षों को काटकर कंकरीट के जंगल बनाने में जुटे हुए हो, संभलोगे कब? आबादी में इजाफा करते जाओ, जरूरतें बढ़ाते जाओ, मकान बड़े करते जाओ, दिल छोटे करते जाओ.” आवाज ने तनिक विराम लिया.
‘या बेईमानी तेरा आसरा’ कहकर ईमानदारी को छोड़ते जाओ, ‘हम तो नहीं सुधरेंगे’ का आश्रय लेकर मनमानी करते जाओ, कल यही कंकरीट के जंगल इतने तप जाएंगे, कि ताप को कम करने में तुम्हारे शीतदायक यंत्र भी लाचार हो जाएंगे.” आवाज शायद खुद लाचार हो गई थी.
”पेड़ों के अभाव में भयंकर प्रदूषण की मार से तुम्हारे वायुशोधक यंत्र भी बेकार हो जाएंगे, तुम ‘एक इंच छाया’ को तरसोगे और अपनी विवेकहीनता के कारण वृक्षों पर रहने वाले खूबसूरत पंछियों को लाश में बदलने वालो, निकट भविष्य में मरघट जैसी शांति में शायद तुम भी जिंदा लाश बन जाओगे, न पानी बचेगा और न पानी पिलाने वाला कोई संवेदनशील.” तृषा के कारण आवाज मानो मौन रहने को विवश हो गई थी.
”एक दूसरे पर छींटाकशी करके जिम्मेदारी से किनारा करके बचने का ढोंग करने वालो, तब विध्वंस तांडव नृत्य करेगा और तुम पर अट्टहास करके हंसेगा—हाहाहाहा…..”
”सृष्टि ने विध्वंस की यह अंतिम चेतावनी दी थी.” मानव ने समझ लिया था.
पुनश्च-
इस बार लघुकथा मंच पर मेरी लघुकथा ‘अंतिम चेतावनी’ को विजेता घोषित किया गया है. ब्लॉग संख्या 2401 के रूप में हम आपके लिए यही लघुकथा प्रकाशित कर रहे हैं. लघुकथा मंच पर मेरी लघुकथा को तीसरी बार विजेता घोषित किया गया है. पहले की दो लघुकथाएं आप पढ़ चुके हैं, जो इस प्रकार हैं.
छतरी वाली लड़की (विजेता लघुकथा)
बहकावे की हद (विजेता लघुकथा)
आप लोगों का ब्लॉग पर निरंतर प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहित करने से ही हमको यह सफलता प्राप्त हो रही है, ऐसा हमारा मानना है. आप सब पाठकगण एवं कामेंटेटर्स बधाई के पात्र हैं. स्नेह बनाए रखने के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
सृष्टि ने मानव को विध्वंस की यह अंतिम चेतावनी दी है, यद्यपि सृष्टि जैसी भी हो, युग-युगांतर तक बची रहेगी. इस चेतावनी को मानना-न-मानना, खुद को विध्वंस से बचाना-न-बचाना मानव के हाथ में है. बाद में हमारी आने वाली पीढ़ियां कहानियां लिखती रहेंगी, कि मनु ने या किसी और ने सृष्टि को नाव पर चढ़ाकर बचाया था. हमारी गल्तियों के कारण हमारी भावी पीढ़ियां शायद विश्वंस से बच भी न पाएं और इतना भी न कर पाएं, क्योंकि सृजन के लिए संवेदनशीलता चाहिए. आज का मानव अपनी लोभ-लालसा के कारण असंवेदनशीलता की सभी हदें पार कर चुका है.