गजल
सामने जो कयाम हो जाता।
नज़रों नज़रों सलाम हो जाता।
जाम का इंतिजाम हो जाता।
जश्न का एहतिमाम हो जाता।
बज़्म में जो सनम चले आते,
एक ताज़ा कलाम हो जाता।
आ गया है रक़ीब महफ़िल में,
कुछ दुआ कुछ सलाम हो जाता।
दर्द होता अगर कहीं शामिल,
फिर तो उम्दा कलाम हो जाता।
जब्त से काम गर लिये होते,
ठीक सारा निज़ाम हो जाता।
— हमीद कानपुरी