दक्षिण की निर्भया के संदर्भ में – दोहे
एक बार फिर से जगा ,मानव बन हैवान ।
उसकी पशुता ने हरा ,नारी जीवन,मान ।।
हद से गुज़री क्रूरता,दक्षिण का यह कृत्य ।
चंदा भी रोने लगा, रोता है आदित्य ।।
वह भोली सी डॉक्टर, मानव सेवा लक्ष्य ।
हिंसक नर ने कर लिया, उस देवी को भक्ष्य ।।
रौंद दिया बूटों तले, कलिका का संसार ।
फांसी में ही शेष अब, ‘शरद’ न्याय का सार ।।
सामूहिक दुष्कृत्य यह, सुनकर झुकते शीश ।
दोषी का संहार हो, विनय कौशलाधीश ।।
क्रूर बना मानव बहुत, तनिक न आई लाज ।
कैसे उसने यह किया, सोचे सकल समाज ।।
दिन पर दिन अब बढ़ रहे, महिला प्रति दुष्कर्म ।
नारी की रक्षा पले, हम सबका यह धर्म ।।
चर्चा में आया नगर, आज हैदराबाद ।
पर सिर सबके झुक गये, है सबको अवसाद ।।
क्योंकर नर कामी हुआ, तजकर पावन रूप ।
वह तो तम में खो गया, सिसके उजली धूप ।।
मृत्युदंड ही कारगर, यही आज हुंकार ।
ये दानव रखते नहीं, जीने का अधिकार ।।
— प्रो. शरद नारायण खरे