इश्तिहार
”अपलम चपलम
चप लायी रे दुनिया को छोड़
तेरी गली आयी रे आयी रे आयी रे.”
अपलम चपलम …”गौरव घर आया तो रेडियो पर यह मधुर गीत बज रहा था, लेकिन उसे लगा घर में भयंकर सन्नाटा पसरा हुआ है. आज यह गीत मां को न मधुरिमता दे रहा था, न वह चपलता, जो वह बचपन से ही देखता आया है.
”यह गीत चल रहा हो और मां न गुनगुनाए और न थिरके, ऐसा कभी हुआ नहीं था.” गौरव सोच रहा था.
”पिछले 5 सालों से ऐसा ही हो रहा है. मां अब किसके लिए गाए, किससे शिकायत करे और किसके लिए थिरके! देखने-दाद देने वाला तो दूसरे जहान में पहुच गया था!” पिता का शरीर शांत हो जाने के बाद वह मौन हो गया था और मां गुमसुम!
”मां ने मुझे जीवन दिया, क्या मैं मां को नया जीवन नहीं दे सकता?” उसने खुद से प्रश्न किया.
”अब तो मैं अच्छी-खासी नौकरी पा गया हूं, पर मां का ऋण तो मैं कभी चुका ही नहीं पाऊंगा. मेरे एक इशारे पर वह आज भी हर चीज तुरंत हाजिर कर देती है.”
”एक बार ही तो मैंने मां से कहा था- ”मैं लंच पर आने वाला था, मेरे बिना आपके मुंह से निवाला चला तो कैसे?” तब से आज तक मैं लंच-डिनर पर आने वाला हूं, तो मां ने सचमुच एक निवाला तक नहीं लिया, बस पानी गटककर मेरे आने का इंतज़ार करती रही है.” ऐसी ही अनगिनत बातें उसे याद आईं.
”मां मुझे शादी के लिए कह रही है, पर ऐसा करता हूं, कि पहले मां के लिए योग्य वर की तलाश करता हूं.” मन ने युक्ति सुझाई.
”नौकरी की वजह से मैं अधिकतर घर से बाहर रहता हूं. इससे मां अकेली पड़ जाती हैं. मां को किताबें पढ़ना और गाने सुनना पसंद है लेकिन मैं अपनी मां के लिए एक जीवनसाथी चाहता हूं. मुझे लगता है कि किताबें और गाने कभी किसी साथी की जगह नहीं ले सकते. एकाकी जीवन गुजारने की बजाय बेहतर तरीके से जीना जरूरी है. मैं आने वाले दिनों में और व्यस्त हो जाऊंगा. मेरी शादी होगी, घर-परिवार होगा लेकिन मेरी मां का क्या? मां को घुटन से निजात दिलानी ही होगी.”
”हम लोगों को रुपये-पैसे, जमीन या संपत्ति का कोई लालच नहीं हैं. लेकिन भावी वर को आत्मनिर्भर होना होगा. उसे मेरी मां को ठीक से रखना होगा. मां की खुशी में ही मेरी खुशी है.” गौरव ने मां को मनाने के बाद इश्तिहार बनाया.
”हो सकता है कि कई लोग मेरी खिल्ली उड़ाएं!” उसका सोचना स्वाभाविक था.
”कुछ तो लोग कहेंगे. सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग?” उसने उस विचार को तुरंत झटक दिया.
इश्तिहार फेसबुक पर पोस्ट हो गया था.
आज भी विजय जैसे समझदार-हमदर्द-निःस्वार्थ लोग हैं, जिनके बल पर यह धरती टिकी हुई है, अन्यथा स्वार्थ के अतिरिक्त कुछ दिखाई-सुझाई ही नहीं देता!