कभी सूरज कभी चन्द्रमा की तरह,
कभी सूरज कभी चन्द्रमा की तरह,
दिखता तू ही तू है खुदा की तरह |
उठी नज़रें मेरी जब भी जिस तरफ़ ,
तुझे पाया वहाँ कान्हा की तरह |
छेड़ती जब भी सुर श्याम की बांसुरी ,
खोई मैं अपनी सुध राधा की तरह |
संग तेरे लगे जग सुन्दर सदा ,
कभी लगता है सच सपना की तरह |
लगता है किरण हो गई बावरी,
कहे सखियाँ मुझे मीरा की तरह |