गीतिका
टपकते आंसुओं को खारा पानी न समझो,
हो गई बात यूँ ही , आनी जानी न समझो।
आहत मन के आह से बरसेगा तेजाब ,
इसी मोड़ पर खत्म ये कहानी न समझो ।
दुष्कर्म तुम्हारा, मर्यादा नारी की कुचली?
इतनी तो बेमोल ज़िंदगानी न समझो ।
नहीं खत्म इसी बात पर ये बात होगी ,
यूँ रहेगी हमेशा तुम्हारी जवानी न समझो।
अरे दुष्ट! इन्हीं आँसुओं मे डूब जायेगा ,
करेगी माफ कोई रूह इन्सानी न समझो ।
— साधना सिंह