आलेख – बाल साहित्य में नवाचार
छोटी उम्र के बच्चों को ध्यान में रख कर लिखा गया साहित्य बाल साहित्य कहलाता है |साहित्य की परंपरा में बाल साहित्य भी बहुत धनी रहा है | बाल साहित्य लेखन की परंपरा अति प्राचीन है |पंचतंत्र नामक पुस्तक इसका उत्कृष्ट उदाहरण है ,जिसमें पशु पक्षियोंको माध्यम बनाकर बच्चों को शिक्षा प्रदान की जाती थी | धार्मिक कहानियों जैसे भक्त प्रहलाद ,ध्रुव,एकलव्य आदि के द्वारा बच्चों में नैतिक मूल्यों को जाग्रत किया जाता था ,साथ ही इनसे बच्चों का स्वस्थ मनोरंजन भी होता था |
प्राचीन बाल साहित्य में चित्र कथाओं की भी प्रचुरता थी जो बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र थी |
बाल साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नही अपितु इसके साथ – साथ उन्हें जीवन की सच्चाइयों,कठिनाइयों और अच्छाइयों सेअवगत कराना भी होता है ,क्यों कि आज का वर्तमान (बालक) कल का भविष्य है |
आज बच्चे पुस्तकों से दूर होते जा रहे हैं यह सोंचने का विषय है क्या कहीं पुस्तकों के स्तर में ,उसकी नवीनता में कोई कमी तो नहीं ! आज के बच्चों में जिज्ञासा अधिक होती है वो कुछ नया सीखना और करना चाहते है शायद यही कारण है जो बच्चे मोबाइल और नेट की दुनिया की ओर ज्यादा आकर्षित और पुस्तकों से दूर हो रहे हैं |इसके अतिरिक्त आज के माता पिता भी बच्चों में पुस्तकों के प्रति अरुचि के लिए ज़िम्मेदार हैं |वे पुस्तक दिलाने की अपेक्षा वीडियो गेम दिलाने में ज्यादा रुचि लेते हैं |इस तरह कहीं न कहीं हम बच्चों को पुस्तकों से दूर करने के लिये जिम्मेदार हैं |
आज आवश्यकता है बाल पत्रिकाओं में नवाचार की |नवाचार (नव+अचार )अर्थात नया विधान |जिसका अर्थ है साहित्य में थोड़ा या बड़ा परिवर्तन लाना | कुछ नया उपयोगी रोचकतापूर्ण लेखन जिससे बच्चों में पुस्तकों के प्रति आकर्षण और पढ़ने की उत्कंठा बढ़े |
बाल साहित्य बालकों की आयु और मानसिक स्तर के आधार पर लिखा जाना चाहिए |2से 7 वर्ष की आयु तक के बच्चों में कहानी का विस्तार चित्रों के माध्यम से किया जाना चाहिए |चित्र रंगीन और आकर्षक होने चाहिए |जिससे बच्चों में पुस्तक के प्रति आकर्षण उत्पन्न होगा |
कहानियाँ नैतिक मूल्यों से पूर्णऔर शिक्षाप्रद होनी चाहिए |कविताओं में लयात्मकता होनी चाहिए |
बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते है अर्थात उन्हें भी जैसा चाहे बनाया जा सकता है |कहानी कविताएँ के माध्यम से बच्चों के चरित्र को न केवल सबल बनाया जा सकता है वरन
उनमे मानवता ,नैतिक मूल्य,संस्कार समर्पण सद्भाव ,समभाव को रोपा जा सकता है |
बच्चों के सम्पूर्ण विकास में पुस्तकों का अहम रोल होता है इसलिए आवश्यक है उच्च गुणवत्ता, रोचकता से परिपूर्ण बाल साहित्य का लेखन और प्रकाशन किया जाए |कहानी ,कविताओं के चित्रों में सकारात्मक सोंच होना अति आवश्यक है साथ ही वैज्ञानिक और अंकीय गतिविधियाँ ,क्रियाकलापों का भी पत्रिकाओं में समावेश होना चाहिए |
बाल साहित्य का उद्देश्य स्वस्थ मनोरंजन , ज्ञानवर्धन ,चरित्र निर्माण के साथ साथ भाषा संवर्धन और साक्षरता कौशल में वृद्धि वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होना चाहिए|
बाल साहित्य में आज बहुत बदलाव आया है |प्राचीन युग में भोज पत्र पर चित्रों के माध्यम से कहानी लेखन प्रारम्भ हुआ फिर कागज के आविष्कार से पुस्तकों के रूप में परिवर्तन हुआ |काले सफेद चित्रों से रंगीन चित्रों का निर्माण शुरू हुआ |आज पुस्तकों के वास्तविक स्वरूप ने ई-पुस्तक और ऑडियो पुस्तक का रूप ले लिया है |ये सत्य है परिवर्तन से ही विकास के चरण आगे बढ़ते हैं |परिवर्तन से ही नवचेतना उत्सुकता जिज्ञासा का जन्म होता है |नवाचार कोई नया कार्य नहीं वरन किसी कार्य को नए तरीके से सुनियोजित रूप में प्रस्तुत करना है |
आज के इलेक्ट्रानिक युग में पुस्तकों के स्वरूप में भी नवाचार हुआ |पत्र पत्रिकाओं ने ई- पुस्तक और ऑडियो पुस्तक के रूप में जन्म लिया |जो बच्चे 2 से 5 वर्ष के है और पढ़ नहीं पाते उनके लिए ऑडियो पुस्तक एक अच्छी शुरुवात है इसके माध्यम से बच्चों को खेल-खेल में कविताएँ सिखाई जा सकती है कहानियों के माध्यम से भी बहुत कुछ सिखाया जा सकता है |वर्तमान में किताबों के इस नए स्वरूप का एक लाभ यह है कि यह हमें कहीं भी कभी भी उपलब्ध हो जाती है और आसानी से इन्हें कहीं भी स्मार्ट फोन ,लैपटॉप के द्वारा पढा जा सकता है |ये पुस्तकें कई फार्मेट में होती हैं जैसे- पीडीएफ , एक्स पी एस आदि
किंतु बाल पत्रिकाएं आज भीअपना अलग स्थान रखती हैं |
बाल साहित्य की पत्रिकाओं का अपना अलग महत्व है |वर्तमान में बाल साहित्य का प्रकाशन प्रचुर मात्रा में और नवीन अवधारणा के साथ हो रहा है |यह दिनों दिन और अधिक पुष्पित-पल्लवित हो जिसके द्वारा बच्चों का उचित मनोरंजन, ज्ञानार्जन और मार्गदर्शन होता रहे|
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’