भाई भरोसे लाल कई दिन जब मुझ से मिलने आये तो बड़े झुंझलाये हुए थे। मैंने उनकी झुंझलाहट का जानना चाहा तो वे मुझ पर ही भड़क उठे और बोले कि तुम भी क्या सच में ही मेरी झुंझलाहट का कारण जानना चाह रहे हो या तुम भी नेताओं और पत्रकारों की ही भांति कुछ औरजानना चाह रहे हो जैसे वे कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। फिर पत्रकार जन उन की बाइट चलाने लगते हैं तो फिर वे कुछ और ही कहने लगते हैं कि ऐसा तो नहीं कहा परन्तु मैंने भाई भरोसे लाल को आश्वासन दिया कि भाई हम तो बचपन से ही लंगोटिया यार हैं और दूसरी बात मैं और आप दोनों में से कोई भी नेता नहीं है जो सुबह कुछ कहे कि सरकार आप के साथ बनाएंगे और शाम को नहीं अपितु दोपहर को ही कह दे कि उन के साथ हम सरकार कैसे बना सकते हैं।
मेरी मित्रता भरी बातें सुन कर भाई भरोसे लाल थोड़े से शांत और आराम से बैठ गए तो मैंने मैंने उन की झुंझलाहट का कारण जानना चाहा तो वे एकदम बम की तरह फट पड़े और बोले कि क्या बताऊं आजकल श्री मती जी आजकल घर में ही नेता बनने का शौक लग गया है वे शायद घर ही नेता बनने की प्रेक्टिस कर रहीं हैं। मैंने आज तुम्हारी भभीसे पूछा था कि आज क्या सब्जी बनाओगी तो उन्होंने कहा कि बहुत दिन हो गए आप को आज पनीर की सब्जी बना कर खिलाऊंगी।
मुझे बाजार जाना था तो मैंने उन्हें पूछा भी कि बाजार से कुछ लाना है क्या ? मेरा मतलब था कि पनीर या अन्य कुछ बाजार से मंगवाना हो तो बता देना परन्तु उन्होंने कहा सबकुछ है कुछ नहीं मंगवाना है। जब मैं बाजार गया तो वहां नत्थू हलवाई के यहां गर्मागर्म कचौड़ियां बन रहीं थी मेरा मन भी बहुत था दो कचौड़ी तो खा ही लूँ परन्तु फिर तुम्हारी भाभी की बात याद आ गई कि उन्होंने कहा था कि आज वह पनीर की सब्जी बनाएंगी और कचौड़ी खा लीं तो फिर रोटी नहीं खाई जाएगी मैं अपने मन को काबू कर के घर आ गया। परन्तु घर आ कर जब खाना खाने लगा तो मेरे सामने पनीर की सब्जी तो दूर सब्जी में पनीर का एक टुकड़ा तक नहीं था बल्कि लौकी की पानी वाली सब्जी थी।
जिसे देख कर मेरा माथा ठनक गया लौकी की सब्जी को देख कर नहीं अपितु उनके कहने के अनुसार कि वे आज पनीर की सब्जी बना कर खिलाएंगी पनीर की सब्जी की कल्पना ले कर घर लौटा परन्तु यहां टोकटोरि में लौकी की पानी वाली सब्जी थी। मैंने पूछा कि घरमें पनीर ंहिताक्या ?यदि नहीं था तो मुझे बता देतीं मैं बाजार से लेलर आ जाता बाजार गया ही था परन्तु तुमने तो कहा था कि कुछ नहीं लाना पनीर और पनीर की सब्जी का मसाला सब है फिर पनीर र्क्यों नहीं बनाया तो वे बड़े आश्चर्य से बोली कि पनीर !पनीर किस लिए होता घर में पनीर कोई गमलों में उगता है ?
यह बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया कि आप ने ही तो कहा था कि पनीर बना कर खिलाऊंगी तो वे बोली मैंने कब कहा था ऐसा मुझे उन की बात सुन कर अपने कानों पर विशवास ही नहीं हुआ कि ये ऐसा भी कह सकतीं हैं ऐसी बात कोई नेता करे तो कोई आश्चर्य नहीं होता परन्तु जब घर में ऐसी बतेब होने लगें या राजनीति होने लगे तो निश्चित यह चिंता का कारण तो होगा ही। मैंने उन्हें फिर फिर से सुबह की बात याद दिलाई कि आप ने ही तो कहा था परन्तु वे बड़े आश्चर्य से बोलीं -अच्छा।
केवल इतना ही नहीं उन्होंने बेटे को भी कोफ्ते की सब्जी बनाने के लिए था तो उस ने भी अपनी माँ को यह बात याद दिलाई कि आप ने मुझे भी तो कोफ्ते की सब्जी बनाएंगी ऐसा कहा था। पर वे इस बात को भी अनदेखा कर के बोली कि लौकी की सब्जी जहर होती है क्या चुपचाप खा लो। इसी बीच बेटी भी बोल पड़ी कि मम्मी आप ने मुझे भी तो आलू गोभी की सब्जी बनाने केलिए कहा था और बना दी लौकी की सब्जी। तब उन्होंने उसे भी कहा कि तो क्या हो गया जरूरी थोड़ी है कि जो मैं कहूँ वही करूँ। मेरी मर्जी मैं किसी से कुछ भी कहूँ औरकुछ भी करूँ।
तब मेरी बेटी ने कहा कि मम्मी आप पहले तो ऐसी नहीं थी जैसी अब महाराष्ट्र में सरकार बनने की बहस सुन कर हो रहीं हैं। जब से वहां सरकार बनने की बातें शुरू हई हीअंतब से ही आप ऐसे बातें करने लगीं है पिछले दिनों से आप बहुत बदल गईं हैं। जैसे वहां पार्टी प्रमुख एकपार्टीसे कुछ कहते हैं और दूसरी से कुछ कहते हैं और पत्रकार वार्ता यानि प्रेस कॉफ्रेस में कुछ और बताने लगतें हैं। और अगले ही दिन अपने धुर विरोधियोंसे से भी जा कर मिल आते हैं। जिस से दूसरे दलों के पसीने छूटने लगते हैं।
मुझे भी लगा कि मेरी बेटी सच कह रही है। तो मैंने भी उस की बात का समर्थन करने की हिम्मत जुटा ली। परन्तु वे फिर भी उसी तरह नेता की ही भांति उसे कहने लगीं कि तू इन की बातों में मत आना तुझे गोभीकी सब्जी ही तो खानी है। इस में कौन सी बड़ी बात है शाम को ही आलू गोभी की सब्जी बना दूंगी। परन्तु बिटिया तुरंत बोली कि मम्मी अब मैं आपकी बातों में आने वाली नहीं हूँ जो समाचार चैनल आप देखतीं हैं वे ही मुझे भी देखने पड़ते हैं और अब मैं भी थोड़ी बहुत राजनीति समझ लेती हूँ। कि नेताओं की बात पर कभी भरोसा मत करना जैसे वे सुबह कुछ कहते हैं और शाम को ही नहीं अपितु दोपहर को कुछ और कहने लगते हैं और अगले दिन तो बिलकुल ही उलटा कहते हैं इस लिए मम्मी आजकल आप भी उन्ही की तरह करने लगीं हैं। कहती कुछ है और कर्टिकुछ और हैं। अब तो मई तब भी एक बार विशवास नहीं करूंगी जब मेरी थाली में आलू गोभी की सब्जी आ जाएगी अपितु पहले उसे चख कर देखूँगी और जब पूरा पता चल जायेगा कि यह आलू गोभी ही हिअ तब ही मानूंगी नहीं तो कुछ पता नहीं आप सरसों के साग के लिए ही कह दो कि यह आलू गोभी की सब्जी है। तब हम ने अपनी पत्नी को समझते हए कहा कि देखो जी इस राजनीति को घर में मत घुसने दो नहीं तो हमारे देश पर पद रहे इस दुष्परिणामों की भांति हमारे बच्चों पर भी इस का बुरा असर पड़ेगा। जब बेटे की शादी हो जाएगी तो वह भी जब तुम से इस तरह राजनीति करेगा तो तुम्हे कितना बुरा लगेगा और यदि तुम भी उस के साथ राजनीति करोगी तो या तो वः तुम से अलग हो जायेगा या तुम उस का घर बर्बाद कर दोगी।
हमे कोई मंत्री पद थोड़ी मिलना है और न ही हम मुख्यमंत्री बनने वाले हैं और आप तो हमारे घर में वैसे भी प्रधान मंत्री बनी ही हुई हैं। इस लिए घर में सुख शान्ति प्रेम और सौहार्द बना रहे हमे इस के लिए काम करना चाहिए राजनेता कुछ भी करें वे हमारे आदर्श नहीं हो सकते हैं हमारे आदर्श पुरुष तो वे बलिदानी महा पुरुष हैं जिन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया हमे उन्हें से सिख लेनी चाहिए ये नेता तोकूर्सी के लिए कुछ भी कर सकते हैं और न ही ये देश की आने वाली पीढ़ियों का ही भला कर रहे हैं। इस लिए घरमे राजनीती मत करो और प्रेम प्यार से रो और सब को रहने दो।
— डॉ वेद व्यथित