जीवन का संगीत
जो मेरा मनमीत बन गया।
जीवन का संगीत बन गया।।
जीवन की राहें रपटीली।
उबड़ – खाबड़ और कँटीली।।
हर पल-पल संग्राम ठन गया।
जीवन का संगीत बन गया।।
अपना जैसा सबको माना।
हृदय दे दिया अपना जाना।।
आस्तीन का साँप बन गया।
जीवन का संगीत बन गया।।
मैंने फूल महकते देखे।
पंछी बाग चहकते देखे।।
काँव-काँव इक काग कर गया
जीवन का संगीत बन गया।।
मुझको ठगने को सब फिरते।
विपदाओं के बादल घिरते।।
स्वाति-बूँद एक मेघ बन गया।
जीवन का संगीत बन गया।।
पेड़ों पर जब फ़ल लद आए।
सबने अपने शीश झुकाए।।
मूर्ख मनुज क्यों ‘शुभम’ तन गया।
जीवन का संगीत बन गया।।
— डॉ भगवत स्वरूप ‘शुभम’