गीत/नवगीत

आल्हा छंद में – देश की बेटी की कहानी

सुमिरन करके जगदंबा को ,नारायण के चरण मनाय
लिखूँ लड़ाई प्रियंका की, पंचो सुनिये ध्यान लगाय
एक लाडली बेटी देश की,  रही यहाँ अपने घर को पाल
लौट रही वो उस दिन घर को, वक्त ने चली अपनी  चाल

वाहन उसका बंद हुआ फिर , डर के मारे थी बेहाल
थमी सांसे कांप गयी रूह, मानो आया कोई काल
मदद तभी दरिंदों से मांग , समझ उन्हें अपना भ्रात
लेकिन गंदी नाली कीड़े , दिखाई फिर कुत्तों ने जात

टूट पड़े वो भूखे भेड़िये , डाला  बेटी को है नोंच
चीख रही वो कोमल  चिड़िया, पंखों को भी दिया  खरोंच
नाजुक नाजुक कोमल कलियाँ,रहे भेडिये उनको रौंद
चीखी धरती फटा आसमां ,नभ में गयी दामनी कौंध ।

कैसे चल सकती है बेटी, होकर मन में बेपरवाह ।
कदम कदम पर डटे भेडिये, रोक रहे हैं जिसकी राह ।
पहले दामनी फिर निर्भया, अब प्रियंका हुई है  दाह
मांग रही मासूम टि्वंकल, देता नहीं कोई  पनाह

टूट पड़ी बेटी पर जब ये, हिजड़े की हिजड़ी औलाद
न मांग बेटी  भीख यहाँ तू, लोग नहीं  ये मादरजाद
चुप्पी साधे बैठा रब भी, गूंगी बहरी है सरकार,
बहु बहन और सभी बेटियां   , बैठी है होके लाचार

मोदी जी कैसा बदला है, मेरा भारत देश महान
बेखोफ हो घूम रहे यहाँ , इंसानों में भी हैवान
खौफनाक मंजर है देखा ,हां माना बदला है देश
न है अपना ये तो भारत , नहीं संस्कृति औ परिवेश

संस्कार तो खो चुके है , फिर कैसे होगा सम्मान
मेकाले के बीज से उपजा, नव युग का ये  हिंदुस्तान
क्या यही अच्छे दिन बोलो, बिन जलके तड़पी है मीन
संस्कृति महापुरुषो की सब, भूल गये वो संस्कार हीन

जो नाश करें मर्यादा का , न  चाहिए वो धुर्त विज्ञान
नहीं चाहिए वो भाषा भी, सभ्य नहीं  है जिसका ज्ञान
नहीं चाहिए वो शिक्षा हमें ,जिसमें न हो वेद पुराण
नही चाहिए वो संस्कृति भी, बना दे जो हमें  पाषाण

हमको चाहिए वोही राष्ट्र , जहाँ नारी का है सम्मान
हमको चाहिए धर्म सनातन, जहाँ बसे नर में  भगवान
हमको चाहिए वही घाट फिर ,सिंह गजा संग पीते नीर
हमको चाहिए वही मानवता, जहाँ हृदय में बहती क्षीर

वोही राष्ट्र बना दो फिर से, जिसमें जन्में मेरे राम
वही राष्ट्र बना दो फिर से, जहाँ लाज बचाते थे श्याम
वही राष्ट्र बना दो फिर से, जहां बढ़ाया जाता चीर
सीता जी के हरण मात्र पर ,  राम चला देते थे तीर

नारी के अपमान मात्र पर, मिट जाता था सारा वंश
लंक जलाते थे महावीर, और हो जाता फिर विध्वंश
जब दुशासन हद से गुजरा, छिड़ गया था महायुद्ध
रूठ जाता है जब काल तो, नारी होती है तब कुद्ध

फिर वही राष्ट्र बनना होगा, जहाँ नारी बनती थी काल
जब उसकी अस्मित पर आती, ला देती है वो भूचाल
आंखों में होती क्रोधी ज्वाला, गले में होती मुंडमाल
रूप भंयकर डरा गया था, अचंभित थे स्वयं महाकाल

रक्तिम तलवार प्यासी है, फिर मांग रही का  रक्त
जागना है महाकाली माँ ,आया फिर संहार का वक्त
प्यास बुझा लो काली माता, काट काट रिपु के मुंड
जो  नारी का करे अपमान , मुंड काट के कर दो झुंड

तुम भी बेटी महा कालिका, रखो कटारी अपने पास
चंडिका बनना होगा तुमको, करने दुष्टों का विनाश
जो देता है गाली तुमको , जुबान उसकी लेना खींच
आंखों को ही फोड़ो उसकी ,गर्दन को दो उसकी भींच

हाथ लगाये गर तुमको तो, बोटी बोटी उसको काट
रक्त पी लेना बन कालिका, फिर कुत्तों को देना बांट
आखिर कब तक जागेगा ये, सोया है जो हिंदुस्तान
न राम जगे नही कृष्ण जगे, मर गया है यहाँ इंसान

— भानु शर्मा रंज

भानु शर्मा रंज

कवि और गीतकार धौलपुर राजस्थान M-7976900735, 7374060400