हमीद के दोहे
बदअमनी का हर तरफ,लगा हुआ अम्बार।
घोड़े अपने बेच कर , सोता चौकी दार।
समझाये कोई मुझे , मँहगाई का राज़।
आखिर क्यूँ मँहगा हुआ,चन्द दिनों में प्याज़।
पाँव बढ़ाते ही चलो, फूल मिलें या खार।
मंज़िल तक पहुँचा नहीं,मान गया जो हार।
दिल में मेरे है बसी , सुन्दर सी तस्वीर
जिससे मिलती है मुझे,सुबह शाम तन्वीर ।
हर सू हमको दिख रहा,दहशत का माहौल।
ऊपर से नीचे तलक , सबके तीखे कौल।
— हमीद कानपुरी