शंकित थी प्रियंका
पीकर शराब इंसान शैतान बन गया था,
छोड़कर ईमान युवा हैवान बन गया था।
नोचा था बदन मिलकर, मार कर जलाया,
दैत्यसुत का वो स्वयं पहचान बन गया था।।
निकले थे जो कमाने, घर में दाल रोटी लाने,
मां बाप के अरमान को, वो ही लगे जलाने।
बन भेड़िया, समाज को ही जंगल बना कर,
पापाग्नि को बढ़ाकर मनुजता लगे मिटाने।।
दुष्कर्म कर रहे थे वे शैतान सा बनकर,
तन नोच रहे थे वे शैतान सा बनकर।
छल रुप में ये दानव अवसर तलास कर,
दुष्कृत्य मिलके करते, शैतान सा बनकर।।
अवसर बना इक शाम ये सहयोगी सा मिले,
भय दूर करनेवाला सफल योगी सा मिले।
नीयत नहीं थी साफ जातुधान सुतों की,
जग लूटने वाले असुर, वियोगी सा मिले।।
अंजान दनुजों से, शंकित थी प्रियंका,
बढ़ते सभी हाथों से, शंकित थी प्रियंका।
मजबूर थी सहयोग चाहिए था निशा में,
अंजाम भयंकर न हो शंकित थी प्रियंका।।
पर हाय “विधाता” तेरी सृष्टि का यह कलंक,
वह दाग बन गया लगा “सदानंद” पर कलंक।
बतला दो आज “अज” क्यों हैवान बनाया,
“कर्तार” हांथ तेरे क्यों ना मिटा यह कलंक।।
हर पल विलख कर तुमको पुकारा तो होगा,
छन-छन प्रभू तुम्हारा रस्ता निहारा तो होगा।
चंद घूंट लेने वाले निशिचर सुतों से लुटकर,
प्राणों की भीख में तुमको पुकारा तो होगा।।
प्रदीप कुमार तिवारी
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045