कहने भर को मानव
बन तो गया मानव
ओढ़ आधुनिकता का
मुखौटा
पर काम सारे करता
आदिमानव जैसे
रहता ऊँची ऊँची
इमारतों में
घूमता बड़े बड़े मालों
पांच सितारा होटलों
विदेशों में
पर जब आती बात
साफ सफाई की
तो हर जगह बिखेरता
गंदगी कागज़, सिगरेट, बोतलें
जिस से होती हवा पानी
साँसे सब दूषित
सरकारें भी कुछ कम नहीं
हमारी
हर मसले पर होती बस
राजनीति
दे नारे नारे बड़े बड़े
पर होता कुछ नहीं
कोई सुधार कहीं
बस खोखले दावों से
रहते उलझाए हम सबको
न खुद व्यक्ति
न खुद समाज
न खुद राजनीतिक पार्टीयां
करती कोई सोच विचार
दिलाने को मुक्ति
इस दमघोटू प्रदूषण से
हरे भरे पेड़ भी दें कैसे
स्वच्छ हवा
जब पड़ा रहेगा कचरा इतना
कब जागेंगे सब
और मिलेगी मुक्ति
हम सबको
जहरीली हवा
दूषित पानी
विस्फोटक प्लास्टिक
और बनेगा जीवन खुशहाल
प्रदूषण मुक्त
देख रही हर आँख, दिल, साँस सपना यही ।।
— मीनाक्षी सुकुमारन