अंदाज़ा
”तुम गीत लिखते हो- ‘नदी मिले सागर में’, मैं तो सागर में समाकर बहुत खुश होती हूं, मुझे कोई घुटन नहीं होती.” नदी ने कहा.
”तुम्हारा कहना है ‘सूरज रे जलते रहना’, मैं सचमुच जलता हूं, पर धरती मां की स्थावर-जंगम सम्पदा की सुरक्षा और चर-अचर प्राणियों का दुख-दर्द मिटाने के लिए, मुझे भी घुटन-तपन नहीं होती.” सूरज का कहना था.
”मैं सबको अपने पते, फल-फूल, अन्न-दलहन-तिलहन यहां तक कि तने, जड़ आदि लुटाकर खुश होता हूं, घुटन का प्रश्न ही नहीं उठता.” वृक्ष ने कहा.
”प्रकृति की दी हुई सुंदरता, कोमलता और महक प्रकृति को ही लुटाकर मैं उसमें मिल जाता हूं, फिर एक नई तरह से समर्पित होने के लिए, घुटन मेरे लिए बनी ही नहीं है.” फूल ने कहा.
”जो भी मेरे पास आता है, मैं सहर्ष उसको अपने में समाहित कर अपनी रौ में रमा रहता हूं. न तो मुझे किसी कुर्सी का मोह है, न मानवों की तरह कुर्सी छिन जाने पर यह कहता हूं- ‘मैं समंदर हूं, लौट कर वापस आऊंगा’, फिर घुटन का क्या काम!” समंदर ने कहा.
”सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया? गाने वालो, सचमुच तुम्हें अंदाज़ा ही नहीं है, कि तुम सब कुछ लुटा के अभी भी होश में नहीं आ रहे हो!” अब तक चुप रहकर सुनती हुई धरा ने कहा.
प्राकृतिक, शारीरिक, सांस्कृतिक प्रदूषण की घुटन से पीड़ित मानव कुछ कहने के काबिल नहीं था.
पीडोफिलिया मनोरोग से ग्रसित भटकते किशोरों-युवाओं द्वारा नन्ही बालिकाओं और किशोरियों का यौन शोषण करके हत्या के जघन्य अपराध को अंजाम देने पर शर्मिंदा मानव अभी भी होश में आने के उपाय का अंदाज़ा लगा रहा है.
पीडोफिलिया (एक मनोरोग है. पीडोफिलिया (या पेडोफिलिया), को आमतौर पर वयस्कों या बड़े उम्र के किशोरों (16 या उससे अधिक उम्र) में मानसिक विकार के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो गैर-किशोर बच्चों के प्रति प्राथमिक या विशेष यौन रूचि द्वारा चरितार्थ होता है। वे बालिकाओं और किशोरियों का बलात्कार कर उनकी हत्या तक कर देते हैं. अभी हाल में ही ऐसे बहुत-से जघन्य अपराधों को अंजाम दिया गया है.