सतानें लगी है चिंता अब घर की।
आती हर रोज बुरी खबर उधर की।
उतरता है ख़ंजर मासूम के दिल में,
हालत बुरी होती है मेरे जिगर की।
करता जुल्मी जुल्म बेखौफ़ हो कर,
डर नहीं है उसे खुदा के कहर की।
माँ बहन बेटी कहीं महफूज़ नहीं हैं,
गिर गई है हया गैरों के नज़र की।
ताजी हवा अभी तक है इस गाँव में,
ज़हरीली फ़िजां हुई अब शहर की।
शिव कब सुधरेंगे हालात अवाम के,
करता हूँ उम्मीद अच्छी खबर की।
— शिव सन्याल