नववर्ष
अलौकिक अवधारणा से पूर्ण हो नूतन वर्ष की परिकल्पना ,
संदेश प्रेम भरा संसार में हर पल फैलाना तुम ।
नववर्ष की उत्कंठा में पतझड़ को मत भूल जाना तुम ,
सार सम्पूर्ण जीवन का दो पल में मत बिसराना तुम ।
परिवर्तन ही जीवन का अद्भुत सत्य है ,
चंद लम्हों के लिए लक्ष्य अपना मत भूल जाना तुम ।
सर्दी गर्मी बारिश पतझड़ जीवन का ही तो रूप है ,
हँसकर भुला देना कष्टों को उम्मीदों का नया दीप जलाना तुम ।
नए दौर की नई रवायत “काव्य रंगोली” बना संसार सारा ,
बनकर दिए की लौ राह औरों को दिखाना तुम ।
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारा एक ही ईश्वर का नाम है ,
भेदभाव के इस भंवर में खुद को मत उलझाना तुम ।
सीख सको तो सूरज से सीखो अनवरत चलता है ,
हर घर को बिन भेदभाव के रोशन भी वो करता है ।
जीत लेना मंजिलों को ‘वर्षा’ कठिनाइयों से मत हार जाना ,
संघर्ष ही है जीत की सीढ़ी ,हौसला सबका बढ़ाना तुम ।
— वर्षा वार्ष्णेय, अलीगढ़