रातों की सीयाही में
रातों की सीयाही में अस्मत के लुटुरे हैं
गुनाह में डूबे दिल, मन में भी अंधेरे हैं
इंसानी जिस्म में ये छुपे हुये दानव है
जुल्मत की दुनियां में ये बनाए बसेरे हैं
बीमार मन के सारे हवस के ये गुलाम
मरी हुयी इस रुह में कायरता के चेरे हैं
कब तक हम यूंही ऐसे जिस्मों से डरेंगे
खुद ही बनाएं अपनी हिफाज़त के घेरे हैं
जुर्रत न करे कोई दामन को अब छूने की
बन जाए गर काली तो हांथ काट दें तेरे हैं
— पुष्पा “स्वाती”