गीतिका/ग़ज़ल

रातों की सीयाही में

रातों की सीयाही में अस्मत के लुटुरे हैं
गुनाह में डूबे दिल, मन में भी अंधेरे हैं
इंसानी जिस्म में ये छुपे हुये दानव है
जुल्मत की दुनियां में ये बनाए बसेरे हैं
बीमार मन के सारे हवस के ये गुलाम
मरी हुयी इस रुह में कायरता के चेरे हैं
कब तक हम यूंही ऐसे जिस्मों से डरेंगे
खुद ही बनाएं अपनी हिफाज़त के घेरे हैं
जुर्रत न करे कोई दामन को अब छूने की
बन जाए गर काली तो हांथ काट दें तेरे हैं
— पुष्पा “स्वाती” 

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है