क्षणिका

हंगामा

कल रात एक भूखी बकरी आई,
पेड़ पर लिखी एक ग़ज़ल उसे भाई,
पूरी-की-पूरी ग़ज़ल वह चबा गई,
पूरे शहर में हंगामा मच गया,
कल रात एक बकरी शेर को खा गई.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “हंगामा

  • लीला तिवानी

    जब कोई भी और आपकी खुशी को नहीं मनाता है,
    तो खुद ही अपनी खुशी मनाओ,
    जब कोई और आपकी उपलब्धि को नहीं मानता है,
    तो खुद ही अपनी उपलब्धि को मानो,
    जब कोई भी और आपको प्रोत्साहित नहीं करता है,
    तो खुद ही अपने को प्रोत्साहित करो.

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