हमीद के दोहे
लफ़्फ़ाज़ों के हम नहीं, बन सकते हमराज़।
करना होगा अब हमें , एक नया आग़ाज़।
गाता अपना गीत हूँ , रही अलग आवाज़।
दुनिया में सबसे अलग, है अपना अंदाज़।
दिल की बस्ती में कहीं, उमड़ा है तूफान।
आँसू बह बह कर रहे , सारा दर्द बयान।
संसद से मैदान तक, हर नेता ग़मख्वार।
फिरभी जीना हो रहा,मुफलिस का दुश्वार।
— हमीद कानपुरी