राजनीति

जानलेवा बनता जवानों में बढ़ता तनाव 

हाल ही में छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में स्थित आईटीबीपी कैंप में एक जवान द्वारा की गई अंधाधुंध फायरिंग से 6 जवानों की मौके पर ही मौत हो गई और 2 जवान घायल हो गए। फायरिंग करने वाले जवान का नाम मोसुद्दुल रहमान था। जिसने बाद में खुद को भी गोली मारकर खुदकुशी कर ली। दरअसल ये कोई पहली घटना नहीं है जिसमें जवान ही जवान की मौत का कारण बना हो, बल्कि ऐसी कई घटनाएं पहले भी घटित हो चुकी हैं। इसी साल मार्च में जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में भी ऐसी ही घटना हुई थी। यहां सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) की 187वीं बटालियन के कैंप में जवानों के बीच किसी बात को लेकर हुई बहस देखते ही देखते खूनी झड़प में बदल गई थी। एक जवान का पारा इतना चढ़ा कि उसने अपनी सर्विस राइफल से तीन साथियों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी और बाद में खुद को भी गोली मार ली थी। इससे पहले जनवरी में जम्मू-कश्मीर के ही श्रीनगर में सीआरपीएफ के एक जवान ने अपने दो साथियों को गोली मारने के बाद खुद को भी गोली मार ली थी। छत्तीसगढ़ में दो साल पहले भी ऐसा हादसा हुआ था। यहां बीजापुर जिले में चिंतलनार इलाके में सीआरपीएफ की 168वीं बटालियन के एक जवान ने अपने साथियों पर गोलियां चला दी थीं। इस घटना में चार जवानों की मौत हो गई थी। अहम सवाल यह है कि आखिर इन घटनाओं के पीछे कौनसा कारण जिम्मेदार है जो सैन्य जवानों को अपनी व अपने ही गुट के जवानों की हत्या करने के लिए बाध्य कर रहा है?
ताजा घटना के बाद छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू कह रहे हैं, ‘छुट्टियां न मिलना इस घटना की वजह नहीं है।’ हालांकि अभी जांच रिपोर्ट आनी बाकी है। लेकिन आईटीबीपी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि, ‘एक साल से ज्यादा समय से उन्हें छुट्टी नहीं मिली थी। वे लगातार छुट्टी की मांग कर रहे थे। वह पिछले कई महीनों से परेशान था।’ उसी बटालियन के जवान ने भी इसी बात की पुष्टि करते हुए कहा, ‘बटालियन में ऐसे और भी लोग हैं जिन्हें एक साल से ज्यादा समय से छुट्टी नहीं मिली है। तनावग्रस्त जवानों के बीच आपसी झड़पें और मारपीट होना तो यहां रोज की बात है।’ इतना ही नहीं उस जवान ने बताया कि गृहमंत्री बयानबाजी बंद कर जवानों की छुट्टियों की अर्जियां मंजूर करवाएं नहीं तो मुमकिन हैं और भी लोग उठाएं ऐसे कदम। दरअसल बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, कोंडागांव और सुकमा राज्य के ऐसे माओवाद प्रभावित इलाके हैं, जिनमें जवानों के काम की परिस्थितियां बहुत ही प्रतिकूल हैं। काम का दबाव, बीमारी, अफसरों से झगड़ा, सुविधाओं की कमी, फैलता असंतोष, परिवार से दूरी और लंबे समयकाल तक अवकाश न मिलना जैसे कारणों से जवान अवसाद में आ रहे हैं। वहीं रिपोर्ट्स के अनुसार अधिकांश मामलों में नाते-रिश्तेदार अथवा पड़ोसी ही गैरकानूनी ढंग से जमीन हड़प लेते हैं और जवान मजबूरियों के कारण कुछ नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में वह असहाय महसूस करने लगता है और अवसाद से ग्रस्त हो जाता है। भारतीय सशस्त्र सेनाओं की अपनी एक भिन्न कार्य संस्कृति है। यहां सभी के बीच सौहार्द की भावना बनी रहे इसके लिए संबद्धता और उत्तरदायित्व की समझ विकसित किए जाने का प्रावधान है। लेकिन असल में ऐसा कुछ होता नहीं है। आज भी अधिकारियों और जवानों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते नहीं बन पाते हैं। आज के जवान पहले से कहीं ज्यादा शिक्षित और जागरूक होते हैं, इसलिए अधिकारियों के लिए उनकी जरूरतें समझना जरूरी है। लेकिन अधिकतर मामलों में तो अधिकारी उन्हें अपना मातहत समझते हैं और उनसे अपने छोटे-मोटे घरेलू काम करवाते हैं। जिससे जवानों में रोष बढ़ता जाता है।
ये बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि साल 2014 से अब तक 9 अधिकारियों, 19 जूनियर कमीशंड अधिकारियों समेत कुल 330 जवानों ने आत्महत्या की है। इस दौरान कई जवानों ने अपने साथी जवानों और अधिकारियों की भी हत्या कर दी है। सेना में जवानों पर दबाव कम करने के तथाकथित कदम उठाए जाने के बावजूद जवानों द्वारा आत्महत्या किए जाने के आंकड़ों में कोई कमी नहीं दिखाई दे रही है। सेना के जवान नौकरी में मिलने वाले मानसिक दबावों के अलावा परिवारिक समस्याओं, प्रॉपर्टी के विवाद, वित्तीय समस्याओं और वैवाहिक समस्याओं के कारण भी आत्महत्या कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्वी राज्यों में चलाए जा रहे आतंकवाद निरोधी अभियानों में लंबे समय तक शामिल रहने के कारण भी जवान भारी दबाव में रहते हैं। इसके अलावा जवानों को काफी कम सैलरी, छुट्टियां और आधारभूत सुविधाएं दी जा रही हैं। बढ़ते तनाव की वजह से कई जवान तो शराब के आदी तक हो जाते हैं और कई बार तनाव इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि जवानों को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ जाता है। यही नहीं कुछ वर्ष पहले आईआईएम, अहमदाबाद ने अपने एक महत्वपूर्ण शोध में तनाव को एक बड़ा कारण माना था जवानों में अनुशासनहीनता के लिए। इस शोध रिपोर्ट का यह निष्कर्ष था कि जवानों के तनाव के लिए कम नींद, लंबी ड्यूटी, कम छुट्टी, रैंक के अनुसार ड्यूटी न मिलना, हमले की स्थिति में भी फैसला लेने का कम अधिकार, वेतन में असमानता, शिकायतों पर गौर न करना, खराब वर्दी पहनने से आत्मविश्वास कम होना, मेस का खराब खाना, अफसरों का गाली-गलौज, परिवार के साथ वक्त गुजारने का कम मौका और अधिकारियों की गलत कारणों से प्रताड़ित किया जाना है।
आवश्यकता है कि इस समस्या से निपटने के लिए जवानों के रहने-खाने की व्यवस्था में सुधार के कदम उठाए जाने चाहिए। जवानों को परिवार साथ रखने, आसानी से छुट्टियां देने और तुरंत शिकायत निवारण की व्यवस्था जैसी सुविधाओं में भी सुधार लाया जाना चाहिए। मेंटल वैलनेस वीक आयोजित किए जाने चाहिए। जिसमें मनोवैज्ञानिकों, आर्ट ऑफ लीविंग, ध्यान विशेषज्ञों व योग शिक्षकों की मदद से जवानों और अफसरों को तनावमुक्त किया जा सके। इसके लिए सैन्य जवानों, अफसरों और जरूरत पड़ने पर उनके परिजनों को भी विशेष काउंसलिंग में शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही देशभक्ति से परिपूर्ण कार्यक्रम व सम्मान समारोह आयोजित कर जवानों को गौरव का अहसास कराया जाना चाहिए। उन्हें यह कतई महसूस नहीं होने दिया जाना चाहिए कि उन्होंने सेना में आकर कोई गलती की है।
— देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - [email protected]