बालगीत – चींटी 🐜🐜
चींटी जब पथ पर बढ़ती है।
ऊँचे पर्वत पर चढ़ती है।।
चढ़ती फिर नीचे गिर जाती।
गिर गिर कर मंजिल को पाती
जब चींटी जिद पर अड़ती है।
ऊँचे पर्वत पर चढ़ती है।।
थकती नहीं हारती चींटी।
मन को नहीं मारती चींटी।।
नए नित्य सपने गढ़ती है।
ऊँचे पर्वत पर चढ़ती है।।
जज़्बा ,जोश, जुनूँ से भरती।
लक्ष्य-प्राप्ति साहस से करती
नहीं किसी से वह लड़ती है।
ऊँचे पर्वत पर चढ़ती है।।
बाधाएँ कितनी भी आएँ।
आँधी तूफां भी टकराएँ।।
माल’ सफलता की पड़ती है।
ऊँचे पर्वत पर चढ़ती है।।
चींटी से लें सबक सुनहरा।
दिखे लक्ष्य बन गूँगा बहरा।।
‘शुभम’ सफल’ मोती जड़ती है।
ऊँचे पर्वत पर चढ़ती है।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’